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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए सण्णियासो १०७ ६ २६३. भय० उक्क० उदी० मिच्छ ०-णस० णि० तं तु छट्ठा०प० । सोलसक०-अरदि-सोग०-दुगुंछ० सिया० तं तु छट्ठा०प० । हस्स-रदि० सिया० अणंतगुणहीणं । एवं दुगुंछाए । ६२६४. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० उक० अणुभागमुदीरेंतो सोलसक०छण्णोक० सिया तं तु छट्ठाणप० । णवूस णि तं तु छट्ठाणप० । $ २६५. सम्म० उक्क० अणुभागमुदीरेंतो बारसक०-छण्णोक० सिया अणंतगुणहीणं । णवुस० णि. अणंतगुणहीणं । एवं सम्मामि० । $ २६६. अणंताणु०कोध० उक्क. उदीरेंतो मिच्छ० तिण्हं कोधाणं णस० अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार शोकको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $ २६३. भयके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व और नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है । जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । नत्कृष्ट अनभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । सोलह कषाय, अरति, शोक और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनदीरक है । यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। हास्य और रतिका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो अनन्तगुणहीन अनत्कष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है । इसी प्रकार जुगुप्साको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। $ २६४.आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला सोलह कषाय और छह नोकषायोंका' कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है । यदि अनुकृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टको अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अ उदीरणा करता है । नपुंसकवेदका नियमसे उदीरक है जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। २६५. सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला बारह कषाय और छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है और कदाचित् अनुदीरक है। यदि उदीरक है तो अनन्तगुणहीन अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। नपुसकवेदका नियमसे उदीरक है जो अनन्तगुणहीन अनत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वको मुख्यकर सन्निकर्ष जानना चाहिए। . ६२६६. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व, तीन क्रोध और नपुसकवेदका नियमसे उदीरक है। जो उत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है या अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका उदीरक है तो उत्कृष्टकी अपेक्षा छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा करता है। छह नोकषायोंका कदाचित् उदीरक
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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