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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए अंतरं १०३ $ २५२. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० - अनंताणु ०४ जह० जह० एगस ०, उक्क० सत्त रादिदियाणि । अजह० णत्थि अंतरं । सम्म० जह० जह० एस ०, उक्क० वासतं । अजह० णत्थि अंतरं । सम्मामि० ओघं । बारसक० - सत्तणोक० जह० जह० एयस०, उक्क० असंखे • लोगा । अजह० णत्थि अंतरं । एवं पढमाए । विदियादि सत्तमा ति एवं चेव । णवरि सम्म ० कसायभंगो । $ २५३. तिरिक्खेसु सम्म० - सम्मामि० णारयभंगो । सेसपय० जह० जह० विशेषार्थ — दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयकी क्षपणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना होनेसे सम्यक्त्व और संज्वलन लोभके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकालं छह महीना कहा है । यह जीव पुरुषवेद और शेष तीन संज्वलनोंके उदयके साथ कमसे कम एक समय के अन्तर से और अधिक से अधिक साधिक एक वर्षके अन्तरसे क्षपकश्रेणिपर चढ़ता है, इसलिए पुरुषवेद और शेष तीन संज्वलनोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जधन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक एक वर्ष कहा है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयसे यह जीव कमसे कम एक समय के अन्तरसे और अधिकसे अधिक वर्षपृथक्त्वके अन्तरसे क्षषक श्रेणिपर चढ़ता है, इसलिए इन दोनों वेदोंके जघन्य अनुभाग के उदीरकोंका जघन्यु अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । $ २५२. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओघके समान है । बारह कषाय और सात नोकषायोंके जघन्य अनुभाग के उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इसी प्रकार पहली पृथिवीमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वका भंग कषायोंके समान है । विशेषार्थ — नरकमें प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी प्राप्तिके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल को ध्यान में रखकर यहाँ मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात दिन-रात कहा है । तथा कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टिके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालको ध्यान में रखकर यहाँ सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि द्वितीयादि पृथिवियोंमें कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि जीव मरकर नहीं उत्पन्न होते, इसलिए उनमें सम्यक्त्वका भंग कषायोंके समान बन जानेसे उनके समान कहा I $ २५३. तिर्यञ्चोंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग नारकियोंके समान है । शेष १. आ०ता० प्रत्योः सम्मामि० इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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