SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए अंतरं १०१ $ २४७. मणुसतिए ओघं । णवरि सम्मामि० जह० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अजह० जहण्णुक्क० अंतोमु० । मणुसअपज० सव्वपय० जह० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे० भागो । अजह० जह० एगस०, उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । $ २४८. अणुद्दिसादि अवराजिदा ति सम्म ० - बारसक ० - सत्तणोक० आणदभंगो । सब्बट्टे सव्वपय० जह० जह० एगस०, उक्क० संखेजा समया । अजह० सव्वद्धा । एवं जाव० । $ २४९. अंतरं दुविहं – जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि - ओघेण आदेसेण य । ओघेण सव्वपयडी • उक्क० अणुभागुदी ० अंतरं जह० एगस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अणुक्क० णत्थि अंतरं । णवरि सम्मामि० अणुक्क० जह० एस ०, उक्क० पलिदो० असं० भागो । ० ० $ २४७. मनुष्यत्रिक में ओघके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विशेषार्थ – मनुष्यत्रिकका प्रमाण संख्यात होनेसे यहाँ सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय तथा अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन सुगम है । $ २४८. अनुदिशसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकषायोंका भंग आनत कल्पके समान है । सर्वार्थसिद्धिमें सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जाननां चाहिए । $ २४९. अन्तर दो प्रकारका है- जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विशेषार्थ- — सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणाके योग्य परिणाम कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिक से अधिक असंख्यात लोकप्रमाण कालके अन्तरसे होते हैं, इसलिए यहाँ सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण कहा है। इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है यह स्पष्ट ही है । मात्र सम्यग्मिथ्यात्व गुण यह सान्तर मार्गणा है, इसलिए
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy