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________________ गा० ६२ ] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए पोसणं २३७. पंचिं०तिरि०अपज०-मणुसअपज. सव्वपय० जह० खेनं । अजह. लोग० असंखे भागो सव्वलोगो वा । $२३८. मणुसतिये सम्म०-सम्मामि० खेनं । सेसपय० जह० खेनं । अजह. लोग० असंखे०भागो सव्वलोगो वा । $ २३९. देवेसु मिच्छ०-सोलसक०-अट्ठणोक० जह लोग० असंखे०भागो अट्ठ चोदस० देसूणा। अजह० लोग० असंखे०भागो अट्ठ णव चोदस० देसूणा । सम्म० जह० खेनं । अजह० लोम० असंखे०भागो अट्ठ चोद्दस० देसूणा । सम्मामि० जह० अजह० लोग० असंखे भागो अट्ठ चोदस० देसूणा । एवं सोहम्मीसाण। २४०. भवण-वाणवें०-जोदिसि० मिच्छ०-सोलसक०-अट्ठणोक० जह० लोग० असंखे०भागो अधुट्ठा वा अट्ट चोद्दस० देसूणा, अजह० लोग० असंखे०भागो अधुट्ठा वा अढ णव चोदस० । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह लोग० असंखे०भागो अधुट्ठा वा अट्ट चोदस० देसूणा । $ २३७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका स्पर्श न क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ६ २३८. मनुष्यत्रिकमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है । शेष प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनुभागके उदीरकाने लोकक असंख्यातवं भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पशन किया है। ६२३९. देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग, सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका स्पर्श न क्षेत्रके समान है। अजघन्य अनभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार सौधर्म और ऐशान कल्पमें जानना चाहिए । ६२४०. भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग और आठ भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग, कुछ कम आठ भाग और कुछ कम नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा सनालींके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम साढ़े तीन भाग और कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श न किया है। १३
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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