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________________ गा० ६२] उत्तरपयडिअणुभागउदीरणाए भंगविचओ अरदि-सोग० अजह० देवोघं । णवरि भवण०-वाण-०-जोदिसि० सम्म० अजह० जह० एगस०, उक्क० सगढिदी देसूणा । इत्थिवेद० जह० जह० एगस०, उक्क० तिण्णि पलिदो० देसणाणि पलिदो० सादिरे० पलिदो० सादिरे । सोहम्मीसाण० इत्थिवेद० देवोघं । उवरि इत्थिवेदो पत्थि । २१३. अणुद्दिसादि जाव सव्वट्ठा त्ति सम्म० जह० अजह० णत्थि अंतरं । बारसक०-सत्तणोक० जह० जह० एगस०, उक्क० सगढ़िदी देसूणा । अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि पुरिसवेद० अजह० जह० एगस०, उक्क० वे समया। एवं जाव०। *णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागो परिमाणं खेत्त फोसणं कालो अंतरं सणियासो च एदाणि कादब्वाणि । २१४ एवमेदाणि अणियोगद्दाराणि एत्थुद्देसे सवित्थरं परूवेयव्याणि त्ति भणिदं होइ। संपहि एदेण बीजपदेण समप्पिदाणमेदेसिमणियोगद्दाराणमुच्चारणाइरियोवएसबलेण परूवणं बत्तइस्सामो । तं जहा- . ६२१५. णाणाजीवेहि भंगविचओ' दुविहो-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । भंग सामान्य देवोंके समान है। इतनी विशेषता है कि भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी में सम्यक्त्वके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण है। . स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे कुछ कम तीन पल्योपम, साधिक एक पल्योपम और साधिक एक पल्योपम है। सौधर्म और ऐशान कल्पमें स्त्रीवेदका भंग सामान्य देवोंके समान है । ऊपर देवोंमें स्त्रीवेद नहीं है। $२१३. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्वके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है। बारह कषाय और सात नोकषायोके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम अपनीअपनी स्थितिप्रमाण है। अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। * नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर और सन्निकर्ष इन अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणा करनी चाहिए । $ २१४. इस प्रकार ये अनुयोगद्वार इस स्थलपर विस्तारके साथ कहने चाहिए यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है। अब इस बीजपदके अनुसार मुख्यताको प्राप्त हुए इन अनुयोगद्वारोंका उच्चारणाचार्यके उपदेशानुसार प्ररूपण करेंगे । यथा $ २१५. नाना जीवोंको अपेक्षा भंगविचय दो प्रकारका है-जघन्यय और उत्कृष्ट । १. ता प्रतौ भंगविचयाणुगमेण इति पाठः ।
SR No.090223
Book TitleKasaypahudam Part 11
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size14 MB
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