________________
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे अंतोमु० ।
२
$ २१२. देवेसु मिच्छ० - अनंताणु०४ जह० अजह० जह० पलिदो ० असंखे ०भागो अंतोमु०, उक्क० एक्कत्तीस सागरो० देसूणाणि । सम्मामि० जह० अजह० जह० अंतोमु०, उक्क० एक्कत्तीसं सागरो० देसूणाणि । एवं सम्म० । णवरि जह० णत्थि अंतरं । बारसक० - छण्णोक० जह० जह० एगस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० देणाणि । अजह० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । णवरि अरदि- सोग० अजह० जह० एस ०, उक्क० छम्मासं । एवं पुरिसवे० । णवरि अजह० जह० एगस०, उक्क० वे समया । इत्थिवे० जह० जह० एगस०, उक्क० पणवण्णं पलिदो० देसूणाणि । अजह० जह० एगस०, उक्क० वे समया । एवं भवण ० - वाणवें ० - जोदिसियादि जाव णवगेवञ्जा त्ति । णवरि सगट्ठिदी देसूणा । अरदि-सोग० हस्स - रदिभंगो । सहस्सारे
८६
णत्थि । इत्थवेद० अजह ०
६० उक्क०
[ वेदगो ७
विशेषार्थ — मनुष्यनी द्रव्यपुरुषके स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़ने पर जब सवेदभागमें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष बचता है तब स्त्रीवेदकी जघन्य अनुभाग उदीरणा होती है ऐसा स्वामित्वसूत्रसे स्पष्ट ज्ञात होता है, इसलिए मनुष्यनीके स्त्रीवेदकी जघन्य अनुभाग उदीरणाका अन्तरकाल नहीं बनता यह स्पष्ट ही है। शेष कथन सुगम है।
$ २१२. देवोंमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण और अन्तर्मुहूर्त हैं तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागरोपम है सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरका छ कम इकतीस सागरोपम है। इसी प्रकार सम्यक्त्वकी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके जघन्य अनुभागके उदीरकका अन्तरकाल नहीं है । बारह कषाय और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तेतीस सागरोपम है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इतनी विशेषता है कि अरति और शोकके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । इसी प्रकार पुरुषवेदकी अपेक्षा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसके अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । स्त्रीवेदके जघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पचवन पल्योपम है । अजघन्य अनुभागके उदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल दो समय है । इसी प्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। इनमें अरति और शोकका भंग हास्य और रतिके समान है । सहस्रार कल्पमें अरति और शोकके अजघन्य अनुभागके उदीरकका
१. आ० ता० प्रत्योः इत्थवेद० जह० अजह० इति पाठः ।
२. आता प्रत्योः जह० अजह० इति पाठः ।