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________________ जयधालासहिदे फसायपाहुरे [वेदगो मार्गदर्शक- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज १६२. किं कारण। उसम-सहयसम्माइष्टिस्स पमत्तापमत्तसंजदाणमपुजन करणखरगोत्रसामगाणं च भय-दुगुंछोदयविरहिहाणमेत्थ गहणादो । पंचाहं पयडीणं पवेसगा असंखेनगुणा । १६३. कुदो ? उपसम-वझ्यसम्माइट्ठिसंजदासजदरासिस्स संखेाणं मागासमेत्य पहाणभावेणावलंबियनादो। * छपहं पयड्रोणं पसगा असंखेनगुणा। १६४. कुदो १ वेदगसम्माइडिसंजदासजदार्ण संखेन्जेहिं भागेहिं सह उत्समखड्यसम्माइद्विअसंजदरासिस्स संखेजाणं भागाणमिह पहाणभावदसणादो। णेदमसिद्ध, भय-दुगुलाणुदयकालमाहप्पावलंबणेय सिद्धसरूवत्तादो। ॐ सत्सकह पयडीएं पवेसगा असंखेनगुणा । ६१६५. कुदों ? खइयसम्माइट्ठीणं संखेजदिभागेण सह वेदगसम्माइडिअसंजदगसिस्स संखेाणं भागाणमिह पहाणत्तदंसणादो । * दसराहं पयडोणं पवेसगा अणंतगुणा । $ १६६. कुदो १ मियाइद्विरासिस्स संखेजदिभागपमाणसादो । वराह पयडोणं पवेसगा संखेनगुणा ।। ५६२. क्योंकि भय और जुगुप्साके उद्यसे रहित जो उपशमसम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीव है तथा अपूर्वकरण उपशामक और क्षपक.. जीव है जनका यहाँ पर ग्रहण किया है। * उनसे पाँच प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं। ६ १६३. क्योंकि उपशमसन्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि संग्रतासंयत जीवराशिके संख्यात बहुमागप्रमाण जीव राशिका यहां प्रधानभावसे अवलम्बन लिया है। * उनसे छह प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे हैं। ६१६४. क्योंकि वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंके संख्यात बहुभागके साथ उपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि असंयत जीवराशिके संख्यात बहुभागको प्रधानता यहां पर देखी जाती है। और यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि भय और जुगुप्साके अनुदय कालके माहात्म्यका अवलम्बन लेनेसे यह सिद्धस्वरूप है। * उनसे सात प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव असंख्यातगुणे है । १६५. क्योंकि तायिकसम्यग्दृष्टियोंके संख्यात भागके साथ वेदकसम्यग्दृष्टि असंयत. राशिके संख्यात बहुभागप्रमाण जीवोंकी यहां पर प्रधानता देखी जाती है। * उनसे दस प्रकृतियोंके प्रवेशक जोच अनन्तगुणे हैं। 5 १६६. क्योंकि ये मिध्यादृष्टि राशिके संख्यात भागप्रमाण हैं । * उनसे नौ प्रकृतियों के प्रवेशक जीव संख्यातगुणे हैं।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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