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________________ मार्गदर्शक : अथर्ववतीसहित विसापूर जी महाराज [ वेदगो १४६. तं जहा - सत्तट्ठ जणा बहुगा वा अणियट्टिवसामगा एकसमयमे किस्से पवेसगा होण बिदियसमए कालं करिय पजायंतरमुब गया, लद्धो एकिस्से पवेसगा जहणेयसमथो । एवं दोण्डं पवेसगाणं पि वत्तव्यं, विसेसाभावादो । उपस्सेय अंतीमुत्तं । છું. ९ १४७. कुदो ? संखेजवार मरसं विदद्यवाहाण मुक्सामग खवगाणमेक-दोपयडिपवेसगपाय परिणदारण मुकस्सा वड्डाणकालस्स तप्यमाणत्तदंसणादो । * सेसाणं पयडीएं पवेसगा सव्वा । ६१४८. सुगममेदं । एवमोघो समतो मणुसतिए एवं चेव । आदेसेण पेरइय० सन्त्रपदा० सच्व्वद्धा । एवं सव्वरइय० । णवरि बिदियादि ससमा चि छ०उदीर० जह० एयसमओ, उक० पलिदो० असंखे० भागो। तिरिक्स-पंचिंदियतिरिक्खतिय सव्वपदा सच्वद्धा । णवरि मंत्र जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । पंचि०तिरिक्खप्रपञ्ज० सव्वपदा सव्वद्धा । मरगुसनपत्र सम्वद्वाणाणि जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । देवाणं णास्यमंगो । एवं सोहम्मादि जाव एवमेवजा चि । भवण्य० वाणत्रं०-जोदिसि० बिदियपुढविभंगो | अणुद्दिसादि सव्वा ति a • १४६. यथा - सात आठ अथवा बहुत अनिवृत्ति उपशामक जीव एक समय तक एक प्रकृति प्रवेशक होकर दूसरे समयमें मरकर दूसरी पर्यायको प्राप्त हो गये। इस प्रकार एक प्रकृतिके प्रवेशकों का जघन्य काल एक समय प्राप्त हुआ । इसी प्रकार दो प्रकृतियोंके प्रवेशकों का भी जघन्य काल एक समय कहना चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है। • * उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त हैं । $ १४७. क्योंकि जिन्होंने संख्यात बार प्रवाहको मिलाया है ऐसे एक और दो प्रकृतियोंकी प्रवेशक पर्याय परिणत हुए उपशामक और क्षपक जीवोंका अवस्थानकाल तत्प्रमाण देखा जाता है। * शेष प्रकृतियोंके प्रवेशकोंका काल सर्वदा है । $ १४८. यह सूत्र सुगम है। इसप्रकार श्रघप्ररूपणा समाप्त हुई। मनुष्यत्रिक में इसी प्रकार जानना चाहिए | आदेश से नारकियों में सब पदवाले जीवोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार सब नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि दूसरीसे लेकर सातवीं तकके नारकियों में छह प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यर्क असंख्यातवें भागप्रमाण है । सामान्य तिर्यों और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिकमे सब पदोंके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है । किन्तु इतनी विशेषता है कि पाँच प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल प्रत्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । वेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याकोंमें सब पदोंके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। मनुष्य अपर्याप्तकों में सब पदोंके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। देवोंमें नारकियोंके समान भंग है । इसीप्रकार सौधर्म कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देशों में जानना चाहिए। भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिपी देवामें दूसरी पृथिवीके समान भंग है। अनुदिशसे I
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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