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________________ जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे [ वेदयो ९ १४२. तिरिक्खेसु दस० एव० अ० सव्वलोगो । सत्त० लोग असंखे भागो सत्त० । [ ए ] लोग० असंखे० भागो द्वचोह० | पंच० लोग० असंखेभागो । पंचि०तिरिक्खतिए दस० णव० अ० लोग० असंखे० मागो सच्चलोगो का सेसं तिरिक्खभंगो । पंचि०तिरिक्ख अप ०-मरसप्रपञ्ज० दस० णव० अट्ट० लोग असंखे० भागो सव्वलोगो वा । मसलिए दस० णव० अ० सत्त० पंचिदियतिरिक्तभंगो । सेसं लोग असंखे० भागो । ७४ प्राप्ति सासादनगुणस्थान में सम्भव है और सामान्यसे सासादन सम्यग्दृष्टि नारकियोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन असनालीके चौदह भागों में से कुछ कम पाँच भागप्रमाण है । इसीसे यहाँ पर सात प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले नारकियोका स्पर्शन उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा है। छह प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवाले नारकी जीव या तो उपशमसम्यग्दृष्टि होते हैं या क्षायिक सम्यग्दृष्टि होते हैं और ऐसे नारकियों का स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाणही होता है सानाले नारकियोंका स्पर्शन उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है । मात्र सातवीं पृथिवीके नारकी मिध्यात्वं गुणस्थानके साथ ही मरण करते हैं, इसलिए इनमें सात प्रकृतियोंके उदीरक नारकियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। १४२ तिर्यक्योंमें दस, नौ और धाठ प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने सर्व लोकप्रभाग क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सात प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भागमभाग और. सनालीके चौदह भागों में से कुछ कम सात भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। छह प्रकृतियोंके उatre जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके चौदह भागों में से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । पाँच प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यात में भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पचचेन्द्रिय तिर्यञ्चधिकमें दस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष भंग सामान्य तिर्यञ्चोंके समान है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य कोंमें दस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिक दुख, नौ, आठ और सात प्रकृतियोंके उदीरक जीवोंका स्पर्शन पचेद्रिय तिर्योंके समान है और शेष पदवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । विशेषार्थ - एकेन्द्रियादि अधिकतर तिर्यञ्च दस, नौ और आठ प्रकृतियोंकी उदीरणा करते हैं और इनका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण है, इसलिए दस, नौ और आठ प्रकृतियोंके उदीरक तिनका स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण कहा है। सास्रावन तिर्यच्च ऊपर सात राजु क्षेत्रका स्पर्शन करते हैं, इसलिए तिर्यों में सात प्रकृतियोंके उदीरोंका स्पर्शन त्रनाली के चौदह भागों से कुछ कम सात भागप्रमाण कहा है। संयतासंयत तिचौका वर्तमान स्पर्शन लोकके श्रसंख्यातनें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन त्रसनालीके चौदह भार्गोमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण है । यहीं कारण है कि यहां पर छह प्रकृतियोंके उदीरक तिर्योंका उक्त स्पर्शन कहा है। पांच प्रकृतियोंके उदीरक तिर्यञ्च उपशमसम्यग्दृष्टि विरताविरत होते हैं और इनका स्पर्शन लोकके असंख्यातों भाग प्रमाण होने से यह उक्त प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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