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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहु 1 [वेदगो संखेजा भागा | एवमणुदिसादि सबट्ठा त्ति । णबरि दस णस्थि । एवं जाक० । $ १३८. परिमाणाणु० दुविहो णि.-~-लोवे० प्रादेसे० ! पोधे० दस० एव० अट्ठ. उदीर० केत्तिया ? अयंता । सत्त० छ० पंच० के० ? असंखेजा । चउराह दोण्हमेकि से उदी, के० ? संखेज्जा । प्रादेसेण सेग्इय० सव्यपदा केतिया ? असंखेजा। एवं सब्बरोरइय-पच्यपंचिंदियतिरिक्ख-मणुसअपञ्ज० देवा भवणादि जाव अवराइदा . । तिरिक्वेस सयपदाणमोघं । मणसेसु दस० णव० अट्ठ० के० ? असंखेज्जा । सेसं० के? संखे । मणुसपञ्ज-मसिणी०-सव्वट्ठदेवा सव्वपदा० केत्ति ? संखेजा । एवं जाव। १३९. खेत्ताणु० दुविहो मि०-अोघेण आदेसे । ओघेण दस० णव० अट्ट सचलोगे । सेसं लोग० असंखे०भागे। एवं तिरिक्वेसु । सेसमग्गणासु सव्यपदा लोग० असंखे०भागे । एवं जाव । ............. ....... प्रकृतियोंके उदीरक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। इसी प्रकार अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवा में जानना चाहिए । मात्र इनमें दस प्रतियोंके उदीरक जीव नहीं है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । १३८, परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और श्रादेश । ओघसे दस, नी और आठ प्रकृतियाँके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। सात, छह और पाँच प्रकृतियोंके उदीरक जीव कितने हैं. ? असंख्यात हैं। चार, दो और एक प्रकृतिके उदीरक जीव . कितने हैं ? संग्ख्यात हैं। आदेशसे नारकियोंमें सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार सत्र नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्गन्च, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव तथा भवनवासियोंसे लेकर अपराजित नकके देवों में जानना चाहिए। तिर्यञ्चों में सब पदोंका भंग श्रोधके समान है। मनुष्यों में दस, नौ और पाठ प्रकृतियोंके उदीरक जीय कितने हैं ? असंख्यात हैं। शेष पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात है। मनुष्य पर्याप्त, मनुज्यिनी और सर्वार्थसिद्धिके देवामे सब पदोंके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। १३९. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश। ओघसे दस, नौ और पाठ प्रकृतियोके उद्दीरक जीवोंका क्षेत्र सय लोकप्रमाण है। शेष प्रकृतियोंके उदीरक जीवकिा क्षेत्र जोकके असंख्यान भागप्रमाण है। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। शेप मार्गणाओंमें सब पदोंके उदीरक जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ-दस, नौ और आठ प्रकृनियोंके उदीरक जीव एकेन्द्रिय भी होते हैं, इसलिए इनका सब लोक क्षेत्र बन जाता है। परन्तु शेष प्रकृतियोंके उदीरक जीव प्रायः संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव ही होते हैं और उनका वर्तमान निवास लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इन पदोंके उदीरक जीवोंका क्षेत्र उक्तप्रमाण कहा है। सामान्य लियश्चोंमें यह प्रोघप्ररूपणा अपने पवानुसार अविकल बन जाती है, इसलिए उनमें सग्भव पदोंका क्षेत्र ओघके समान जाननेकी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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