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गा० ६२ ]
उत्तरपयडिउदीरणाए अणियोगद्दारपरूवणा
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क० पोक० सिया उदीर० । एवं पुरिसवे । इस्समुदीरेंतो दंसणतिय सोलसफ०इस्थिये ० पुरिस०-मय- दुछ० सिया उदीर० । रदि० णियमा उदीर० । एवं रदीए| एवमरदि-सोग० | भयमुदीरेंतो से सिया उदीरेंतो । एवं दुगुंछा० । एवं भवरण ०वाणचें ० जोइसि० - सोहम्मीसा० । एवं चैव सणकुमारादि जाव णववगेजाति वरि इथिवेदो गत्थि । पुरिस० धुवं कायव्यं । अशुद्दिसादि सव्वा ति सम्म० उदीरेंतो वारसक० छण्णोक० सिया उदीर० । पुरिस० शिय० उदीर० । अपचक्खाणकोहमुदीरंतो दोहं कोहागपुर सिवा उदीम चरणपरोक्त सिया । उदीर । एवमेकारसक० | पुरिस० उदीरेंतो सम्म बारसक० द्वष्णोक० सिया उदीर० । हस्तमुदीरेंवो सम्प्र० चारसक० -भय-दुगुंड० सिया उदीर० । पुरिस०-रदि० यि उदीर० । एवं रदीए । एवमरदि - सोग० । भयमुदितो सम्म० बारसक० - पंचोक० सिया उदीर | पुरिसत्रे० यि० उदीर० । एवं दुगुंछ० । एवं जाव० |
६ ५५. णाणाजीवेहिं भंगविचयाशु० दुविहो णि० – श्रघेण आदेसेण य |
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सोलह कपाय और छह नोकयायोंका कदाचित् उदीरक होता है । इसीप्रकार पुरुषवेदकी मुरुयता से सन्निकर्ष जानना चाहिए। हास्यकी उदीरणा करनेवाला जीव तीन दर्शनमोहनीय, सोलह कपाय, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साका कदाचित उदीरक होता है । रतिका नियमसे उदीरक होता है । इसीप्रकार रतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसीप्रकार रति और शोककी मुख्यतासे भी सन्निकर्ष जानना चाहिए। भयकी उदीरणा करनेवाला जीव शेष प्रकृतियोंका कदाचित् उदीरक होता है। इसीप्रकार जुगुप्साकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए । इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिपी, सौधर्म और ऐशान में जानना चाहिए। सनत्कुमारसे लेकर नौ प्रेवेयक तक के देवोंमें भी इसीप्रकार जानना चाहिए । किंतु इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं होती । पुरुषवेदक उदीरणा ध्रुव करनी चाहिए। छानुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितक के देवोंमें सम्यक्त्वकी उदीरणा करनेवाला जीव बारह कपाय और छह नोकपायों का कदाचित् उदीरक होता है । पुरुषवेदका नियमसे उदीरक होता है । अयाख्यानावरण क्रोधको उदीरणा करनेवाला जीव प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन इन दो क्रोधों और पुरुषवेदका नियमसे उदीरक होता है । सम्यक्त्व और छह नोकपायोंका कदाचित् उदीरक होता है। इसीप्रकार अप्रत्याख्यानावरण मान आदि ग्यारह कपायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्षं जानना चाहिए। पुरुषवेदकी उदीरणा करनेवाला जीव सम्यक्त्व, बारह काय और छह नोकपाका कदाचित् उदीरक होता है । हास्यकी उदीरणा करनेवाला जीव सम्यक्त्व, बारह कपाय, भय और जुगुप्साका कदाचित उदीरक होता है । पुरुषवेद और रतिका नियमसे उदीरक होता है। इसीप्रकार रतिकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसीप्रकार अरति और शोककी मुख्यतासे भी सन्निकर्ष जानना चाहिए। भयकी उदीरणा करनेवाला जीव सम्यक्त्व, वारह, कपाय और पाँच नोकषायोंका कदाचित उदीरक होता है । पुरुषवेदका नियमसे उदीरक होता है । इसीप्रकार जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्षं जानना चाहिए । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
$ ५५. नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयानुगमके आश्रयसे निर्देश दो प्रकारका हूँ -- भो