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________________ कि:- आचार्यश्री सविधिार TURUT D ३६० जयधवलासहिदे कसायपाइड [ बंदगी ४४. पुरिसवेद० सम्बत्थोरा असंखे० गुणवाड्डि। असंखे० गुणहाणि संखेगुणा | सेसमिस्थिवेदभंगो । एवं तिरिक्खा० । णवरि चदुसंजलण-तिष्णिवेदसम्म० असंखे०गुणववि-हाणि पाथि। ८४५. प्रादेसेण णेरड्य० मि. सुबत्योबा असंखे गुणहाणि । अवत्त. असंखे०गुणासिख गुणहाणि असखे गुणा । संखे गुणवाड्डि. विसेसाहिया | संखे०. भागरड्डि-हाणि• दो वि सरिसा संखे०गुणा। असंखे०भागवड्डि० असंखे०गुणा । अवत्त० संखे गुणा। अबढि० असंखे गुणा | असंखे भागहाणि संखेन्गुणा । सम्म ओधं । णरि असंखेजगुणहा० णस्थि । सम्मामि० श्रोघं । १८४६. सोल सक०-छण्णोक० सम्वत्थोवा संखंजगुणहा० । संखे० गुणवट्टि० विसेसा । संखेजभागवडि-हा. दो वि सरिसा संखे० गुणा | असंख०भागवड्डि. असंखेजगुणा । अक्त० संखे गुणा । अवड्डि० असंखेजगुणा। असंखे० भागहा. संखे० गुणा । एवं णqस० । वरि अवत्त० णस्थि । एवं पढमाए । बिदियादि सत्तमा ८४५. पुरुपबंदकी असंख्यात गणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे असंख्यात गुणहानि स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। शेष भंग स्त्रीवेदके समान है। इसीप्रकार सामान्य तिर्यग्नामें जानना चाहिए। इसनी विशेपता है कि इनमें चार संज्वलन, तीन वेद और सम्यक्त्वकी अगख्यात गुणवृद्धि और असंख्यात गुणानि स्थितिउदीरणा नहीं है। १८४५. आदेशसे नारकियों में मिथ्यात्वकी असंख्यात गुणहानि स्थितिक उदीरक जीव सबसे स्तोक है। उनसे प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुरणे हैं। उनसे संख्यात गुणहानि स्थिति के उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे संख्यात गुणवृद्धि स्थिति के मारक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात मानहानि इन दोनों ही स्थितियोंक उदीरक जीव समान होकर संख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जांध राख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरक जीव संख्यात गुणे हैं। सम्यक्त्यका भंग ओवके समान है। इतनी विशेषता है कि इसकी संख्यात गुणहानि स्थिति उदीरणा नहीं है । सम्यग्मिथ्यात्वका भंग ओपके समान है। ८४६. सोलह कषाय और छह नोकषायकी संख्यात गुणहानि स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे राख्यात गुणवृद्धि स्थितिके उदीरक जीव विशेष अधिक हैं। उनसे संख्यात भागवृद्धि और संख्यात भागहानि इन दोनों स्थितियों के उदीरक जीव परस्पर समान होकर संन्यातगणे हैं। उनसे असंख्यात भागवृद्धि स्थिति के जदीरक जीव असंख्यातगणे हैं। उनसे अवक्तव्य स्थिति के उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अवस्थित स्थिति के नदीरक जीव असंख्यातगणे हैं। जनस असंख्यात भागहानि स्थिति के उद्दीरक जीव संख्यातमुरणे हैं। इसीप्रकार नपुसकवेदको अपेक्षा जानना चाहिए। इसी विशेषता है कि इसकी अवाच्य स्थिसिउदीरणा नहीं है। इसीमकार पहिलो पृथिवा में जानना चाहिए। दूसरसे लेकर सातवीं पृथिवीतकी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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