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________________ गा. ६२] पसरपथचिद्विदिउदीरणाए वडिविदिउदीरणारिओगहार ८३ पुरिसवेद० असंखे० भागहाणि-अवष्टि सम्बद्धा । सेसपदा० सम्मत्तभंगो । णवरि पुरिसवे. असंखे० गुणवड्डि• जह• एगस०, उक० संखेना समया । ८२४. श्रादेसेण सव्वणेग्इय० -पंचिंदियतिरिक्सनिय-देवा भवणादि जाव सहस्सारा ति अप्पप्पणो पयडि० असंखे० मागहाणि-अबढि० सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एमासवर्थक उकाशावधि सुरवातमागाहारि सम्मामि० ओघं । सम्म० असंखे० भागहाणि सव्वद्धा । सेसपदा० जह० एगस०, उक्क० श्रावलि असंखे भागो। ८२५. तिरिक्खेसु सवपयडी० सयपदा० ओघ । पंचिंदियतिरिक्खअप० सब्बषयडी० असंखेजभागहा० अबहिः मन्बद्धा । सेमपदा० जह• एग०, उक्क. आवलि. असंखे०भागो। * ८२६. मणुसेसु मिच्छ०-गवूम० पंचिंदियतिरिक्तभंगो। णवरि असंखे०गुणहाणि-अवत्त० जह० एगस, उक० संखेजा समया। सम्म० असंखे भागहाणि. इस्थिवे०-पुरिस० असंखे०भागहा.-अववि० सव्यद्धा । सेसपदा० जह० एगम, खीयेद और पुरुषवेदकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिनिके उधीर कोका काल सर्वदा है। शेष पदोंकी स्थिति के उदीरकोका भंग सम्यक्त्वके समान है। इतनी विशेषता है कि पुरुषवेदकी असंख्यात गुणवृद्धिकी स्थितिके उदारकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। ८२५. आदेशसे सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिक, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवों में अपनी-अपनी प्रकृतियोंकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंको स्थितिके उदीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सालिके आसंख्यातवें भागप्रमाण है। इसनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वका भंग अोधके समान है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंकी स्थिति के उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। १८२५. तिर्यश्वोंमें सब प्रकृतियोंके सब पदोंकी स्थितिके उदीरकोंका भंग ओषके समान है। पछेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोकी असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति के उदीरकोका काल सर्वदा है। शेष पदोंकी स्थिति के उपीरकोका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल भावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। ८२६. मनुष्याम मिथ्यात्व और नपुसकवेदका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि असंख्यात गुणहानि और अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है. और उत्कृष्ट काल संख्यास समय है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति तथा स्त्रीवेद और पुरुषवेड़की असंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। शेष पदोंकी स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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