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________________ ३७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो असंख० भागो, उक्क० सम्वेसिं सगद्विदी देसूणा । एवमणंताणु०४ । णवरि असंखे०. गुणहाणि णस्थि । एवं बारसक०-छण्णोक० । परि असंख०भागहाणि अवत्त० जह: एयस० अंतोमु०, उक० अंतोमु० । सम्म० असंखे भागहाणि जह० एयस०, असंखे भागवडि-संखे० भागहाणि-अवत्त० जह० अंतोमु०, दोपड्डि० जह. पलिदो. असंखे० भागो, उक्क० सन्वेसि सगहिदी देसूरणा । सम्मामि० असंखे०भागहाणि-अवत्त. जह० अंतोमु०, उक० सगहिदी देसूणा । पुरिसवे. असंखे भागहाणिक जह० उक. एयस० । संखे०भागहाणि मिच्छत्तभंगो। 5८०६. अणुदिसादि सव्वट्ठा त्ति सम्म० असंखे०भागहाणि. जह० उक्क० एयस० 1 संखे० भागहाणि जहणुक ० अंतोमु० । अवत्त० णस्थि अंतरं । एवं पुरिसवे । पवरि अवत्त० णस्थि । बारसक०-छण्णोक० असंखे०भागहाणि० जह० एगस०, उक्क छु । संसोजमगतीनिमित्ताही महक्काच अंतोमुहुत्तं । एवं जाव० । ८०७. णाणाजीवेहि भंगविचयाणु० दुविहो णि०–ोघेण आदेसेण य । भोषेण मिच्छ०-णस० असंखे०भागवड्डि-हाणि-अवढि० णिय० अस्थि । सेसपदा भयणिजा। सोलसक०-छपणोक० असंखे भागवड्डि-हाणि-अवढि० अवत्त णिय० पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है तथा सबका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। इसीप्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेपता है कि भसंख्यात गुणहानि स्थिति उदीरणा नहीं है। इसीप्रकार बारह कपाय और छह नोकषायकी अपेशा जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थितिउदोरणांका जघन्य अन्तर एक समय और अन्तर्मुहत है तथा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्वकी असंख्यात भागहानि स्थिति उदीरणाका जघन्य अन्तर एक समय है, असंख्यात भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर अन्तमुहूत है, दो वृद्धियोंका जघन्य अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है तथा सषका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यग्मिध्यात्वकी असंख्यात भागहानि और अवक्तव्य स्थितिजवीरणाका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उस्कृष्ट अन्तर कुछ कम अपनी स्थितिप्रमाण है । पुरुपरेदकी असंख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यात भागहानि स्थिति दीरणाका भंग मिथ्यात्वके समा।है। ८०६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितफके देवोंमें सम्यक्त्वकी असंख्यान भागहानि स्थिविउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। संख्यात भागहानि स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। प्रवक्तव्य स्थिति उदीरणा नहीं है। यारह कषाय और छह नोकपायकी असंख्यात भागहानि स्थितिपदीरणाका जघन्य अन्तर एफ समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। संख्यात भागहानि और प्रवक्तव्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए । ६८०७. नाना जीवों का अवलम्बन कर भंगविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और प्रादेश । प्रोबसे मिथ्यात्व और नपुसकवेदकी असंख्यात भागवृद्धि, भसंख्यात भागहानि और अवस्थित स्थिति उदीरणा नियमसे है। शेष पद भजनीय हैं। सोलह कलाय
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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