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गा० ६२] उत्तरपउिद्विदिउदीरणाए पदणिक्खेवमणिमोगद्दारं अप्प० असंखे गुणा । पुरिसवेद पत्थि अप्पाबहुअं । अदिसादि सम्वट्ठा त्ति सम्म०बारसक०-छएणोक० सम्वत्थोवा अवत्त । श्रप्प. असंखे गुणा । पुरिस० णस्थि अप्पाबहुअं । णवरि सबढे संखेजगुणं कादब्बं । एवं जाक० ।।
___ मार्गदर्शक आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज
भुजगाराष्ट्रादउदारणा समत्ता। १७६८. पदणिखेचे तत्थ इमाणि तिषिण अणियोगद्दाराणि-समुक्त्तिणा सामित्तमप्पाबहुरं च । समुकित्तणाणु० दुविहं-जहण्णुक्कस्सभेएण | उकस्से पयर्द । दुविहो wिo---श्रोघेण आदेसेण य । श्रोघेण मिच्छ० सम्म०-सोलसक०-णवणोक० अस्थि उक्क० वड्डी० हाणी अबढाणं च ! सम्मामि० अस्थि उक्क. हाणी | आदेसेण सधणेरइय-सब्बतिरिक्ख-सव्यमणुस्स-सव्वदेचा त्ति जाओ पयडीओ उदीरिज्जति तासिमोघं । णवरि प्राणदादि णवगेवजा ति सम्म० अस्थि उक्क० वड्डी हाणी च | अवट्ठाणं णस्थि । सेसषयडीणपस्थि उक० हाणी । अणुहिसादि सन्नहा. त्ति सम्म०बारसक सत्तयोक० अस्थि उक० हाणी । एवं जाय० ।
७६९, एवं जहण्णयं पिणेदव्वं । । ७७०. सामित्तं दुविहं-जह ० उक० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि--- ओघेण आदेसेण य । अोघेण मिच्छ०-सोलसक० उक्क वहिहिदिउदी० कस्स ? - इनसे प्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इनसे अल्पतर स्थितिके उदीरक
जीव असंख्यातगुरणे हैं । पुरुषवेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और छह नोकषायकी श्रवक्तव्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतर स्थितिके उदीरक जीव असंख्यासगुणे हैं। पुरुषवेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व नहीं है। इतनी विशेषता है कि सार्थसिद्धि में संख्यातगुणा करना चाहिए। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
इसप्रकार भुजगार स्थितिउदीरणा समाप्त हुई। ७६८. पदनिक्षेपमें ये तीन अनुयोगद्वार हैं-समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । समुत्कीर्तनानुगम दो प्रकारका है--जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और श्रादेश। ओरसे मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सोलह कषाय और नौ नोकपायकी उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थान है । सम्यग्मिथ्यात्वको उत्कृष्ट हानि है । आदेशसे सब नारकी, सब तिर्यछ, सत्र मनुष्य और सब देव जिन प्रकृसियोंकी उदीरणा करते हैं उनका भंग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि मानतकल्पसे लेकर नौ अवेयकतकके देवोंमें सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट वृद्धि और हानि है। प्रस्थान नहीं है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सम्यक्त्व, बारह कषाय और सात नोकपायकी उत्कृष्ट हानि है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए।
F७६६. इसीप्रकार जघन्यका भी कथन करना चाहिए । ६७७०. स्वामित्व दो प्रकारका है-जधन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश