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गा० ६२] उत्तरपयसिद्विविउदारणाए मुजगारप्रणियोगहार
६७४७. आदेसेण णेरड्यन्वर्गमिछल-लपर्क प्रमाणीकायगावपारलोग० असंखे०भागो, छचोदस० । णवरि मिच्छ० अक्त्त. लोग० असंखे भागो, पंचचोदस० । सम्म०-सम्मामि० खेत्तं । एवं विदियादि सत्तमा त्ति । णवरि सगपोसणं । सत्तमाए मिच्छ० अवत्त० खेत्तं । पढमाए खेत्तभंगो।
१८४८. तिरिक्खेसु मिच्छ• ओधं । गवरि अवत्त. लोग० असंखे० भागो, सत्तचोदस० । सम्म० अप्प० छचोहमः । सेसपदाणं खेत्तं । सम्मामि० खेत्तं । सोलसक०-सत्तणोक० अोघं । इस्थिवे०-पुरिसवे० सच्चपदा लोग० असंखे० भागो सबलोगो वा । अतः उक्त स्पर्शनका उल्लेख यहा नहीं किया गया है। इनना विशेष यहाँ और समझना चाहिए कि स्त्रीयेद और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरमाके समय त्रसनालीके चौदह भामों में से कुछ कम आठ भागप्रमरण स्पर्शन नहीं घटित होता, इसलिए यहाँ खीवेद् और पुरुषवेदकी अवक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका पर्शन मात्र लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकपमाण बतलाया गया है। शेष कथन सुगम है।
६७४७, प्रादेशसे नारकियोंमें मिध्यास्त्र, सोलह कपाय और सात नोकषायके सब पदोंके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और उसनालीके चौदह भामि से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इतनी विशेषता है कि मिथ्य त्वकी अबक्तव्य स्थिति के उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और बसनालीके चौदह भागों से कुछ कम पाँच भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। इसीप्रकार दूसरी पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवीवक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । सातवीं पृधिवीमें मिथ्यात्वकी अयक्तव्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। प्रथम पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं।
विशेषार्थ-मिथ्यात्वको अवक्तव्य स्थितिरदारणा होती तो सातों पृश्रिवियों में है, किन्तु सात नरकमें मारणान्तिक समुद्घातके समय और वहाँ उत्पन्न हानेके प्रथम समय में मिथ्यात्वकी श्रवक्तव्य स्थितिउदीरणा सम्भव नहीं है, इसलिए मिथ्यात्वकी श्रवक्तव्य स्थिति के उदीरकाका स्पर्शन सामान्यसे नारकियों में सनाली के चौदह भागोंमसे कुछ कम पाँच भागप्रमाण और सातवे नरकमें लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है।
८. तिर्योंमें मिथ्यात्वका भंग प्रोघके समान है। इतनी विशेषता है कि इसकी अवक्तव्य स्थिति के उदीरकांने लोकके भसंख्यातवें भाग और त्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम सान भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी अल्पतर स्थितिके उदीरकोंने वसनालीके चौदह भागों से कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेप पदोंका भंग क्षेत्रके समान है। सम्यग्मिध्यात्वका भंग क्षेत्रके समान है। सोलह कषाय और सात नोकषायका भंग ओघ के समान है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदके सत्र पदोंके जदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ—जो तिर्यश्च या मनुष्य मरणके बाद प्रथम समयमै मिथ्यादृष्टि होकर एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं वे ऊपर मनालीके चौदह भागों से कुछ कम सात भागप्रमाण