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________________ मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिासागर जी महाराज गा०६२] उत्तरपयलिहिदिउदारणाए द्विदिमप्पाबहुध पुरिसवे. सव्यस्थोवा जह० द्विदिउदी० [ अजह• छिदिउदी० जीवा असंखेगुणा । सेमगदीसु सध्यपयडीणं जह• अजह० उक्करसभंगो । एवं जाव० । ६९५. विदिअप्पाबहुअं दुविहं----जह ० उक्क० । उकस्से पयद । दुविहो णि-श्रोघेण प्रादेसेण य । श्रोघेण सम्बत्थोवा एणवणोक० उक्क० द्विदिउदी । सोलसक० उक. द्विदिउदी. विसेसा० । सम्मामि० उक्क० द्विदिउदी विसेमा० । सम्म० उक्क० द्विदिउदी. विसेसा० । मिच्छ, उक्क० डिदिउदी० विसेसा० । एवं सम्ब रहय० । परि इत्थिवे०-पुरिस० णस्थि । तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतिए प्रोपं । पवरि पञ्जतएसु इस्थिवे० णस्थि । जोणिसीसु.पुरिस०-णवुम० णस्थि । पंबिंदियतिरिक्खअपज मणुस अपञ्ज० सव्वत्थोवा सोलसक.. सत्तणोक० उक० विदिउदी० । मिच्छ० उक्क० द्विदिउदी. विसेसा० | मणुसतिए पंचिंदियतिरिक्खतियभंगो । ६९६. देवाणमोघं । णवरि णस० णत्थि ! एवं भवण-वाण-जोदिसि०सोहम्मीसाणे ति । सणकुमारादि सहस्सारे चि एवं चेव । णवरि इत्थिवे. पत्थि । आणदादि जाव णचगेवा ति सम्वत्थोत्रा अरदि-सोग० उक० द्विदिउदी। ".AAIAPr-i __ भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद और पुरुषवेदको जघन्य स्थितिके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अजघन्य स्थितिके उदीरक जीव असंख्यातगुणे है। शेष गतियों में सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के उदीरकों का भंग उत्कृष्टके समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६६६५. स्थिति अल्पबहुत्य दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-श्रोत्र और आदेश । मोघसे नौ मोकपायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा सबसे स्तोक है। उससे सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति उदीरणा विशेष अधिक है। उससे सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। उससे मिध्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है। इसीप्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी उदारणा नहीं है। तिर्यञ्च और पश्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिको अोधके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि सिर्यश्च पर्याप्तकों में स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है तथा योनिनी तिर्यच्छोंमें पुरुषवेद और नपुंसक बेदकी उदीरणा नहीं है। पञ्चन्द्रिय तिर्यकच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में सोलह कषायें और सात नोकषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदोरणा सबसे स्तोक है। उससे मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थितिजदीरणा विशेष अधिक है। मनुष्यत्रिकमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिकके समान भंग है। ६६. देवों में आपके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि इनमें नपुसकवेदकी उदीरणा नहीं होती। इसीप्रकार भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशानकल्पतकके देवों में जानना चाहिए। सनत्कुमारकल्पसे लेकर साहसार कल्पतकके देवोंमें इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं होती। पानत. कल्पसे लेकर नौ अवेयक तफके देवोंमें अरति और शोककी उत्कृष्ट स्थितिउदोरणा सबसे स्तोक ४०
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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