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________________ गा० ६२] सतरपयडिद्विदिवदीरणाए णाणाजीदेहि कालो २०५ ६८०. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० गोलमक०-सत्तणोका जह० द्विदिउदी. जह० एयस०, उक० आवलि० असंखे भागो । अजह सव्वद्धा । सम्म०-सम्मामि० प्रोपं । एवं पढमाए । ६८१. विदियादि जाव लट्ठि ति सम्म०-मिच्छ जह जह० एयस०, उक्क० श्रावलि० असंखे०भागो । अजह० सम्बद्धा । सम्मामि० श्रीधं । अणंतागु०४ जह० द्विदिउदी. जह• एयस०, उक्क० अंतोमु० । अज० सम्बद्धा। बारसक०-सत्तणोक० जह विदिउदी० जह० एस०, उक्त संखेजा समश । अजह सव्वद्धा । सत्तमाए सोलसक०-भय-दुगुंडा० जह० द्विदिउदी० जह० एयस०, उक्क पंलिदो० असंखे.. भागो । अज० सम्बद्धा । सम्मा०-मिच्छ०-पंचणोक० जह० द्विदीउदीर० जह० एयस०, उक० श्रावलि. असंखे०भागो । अज० सम्बद्धा । सम्मामि० श्रोधं । सन्तानकी अपेक्षामविचार किया जाय ताविलासागल का यानामा संख्याप्त समय होगा यही कारण है कि इन प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है । शेष कथन सुगम है। ६८०. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकषायों की जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवे __ भागप्रमाण है । अजघन्य स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भंग प्रोधके समान है । इसीप्रकार प्रथम पृथिवीमें जानना चाहिए । विशेषार्थ_सामान्यसे नारकियोंमें मिध्यात्व, सोलह कपाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। यदि माना जीवोंकी अपेक्षा अत्रुटत् संतानकी अपेक्षा यह काल लिया जाय तो वह आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है। यही कारण है कि यहाँ उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के उदीरकोंका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा है । शेष कथन सुगम है । ६८१. दूसरी पृथिवीसे लेकर छटी पृथिवी तकके नारकियों में सम्यक्त्व और मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलि. के असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। सम्यग्मिध्यात्वका भंग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धी चारका जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है। बारह कपाय और सात नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदोरकोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका काल सर्वदा है । सातवीं पृथिवी में घोलह कषाय, भय और जुगुप्साको जघन्य स्थितिके उदीरकोंका जघन्य काल एक समय है पीर अत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अजघन्य स्थिति के उदीरकोंका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और पाँच नोकषायोंकी जघन्य स्थितिके उदीरफोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पावलिके असंख्यासवे भागप्रमाण है। अजघन्य स्थितिके उदीरकों का काल सर्वदा है। सम्यग्मिथ्यात्वका भंग आपके समान है। 1. पा प्रती उस संखेमा समया पलिदो० इति पाउः ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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