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________________ अयधवलासहिदे कसायपाहुदे [षेदगी विदियादि जाव सत्तमा चि । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत्तं । ६६८. तिरिक्खेसु मिच्छन्-सोलसक०-सत्तणोक०-सम्मामि० जह० अजह. खेत्तं । इस्थिवे०-पुरिसवे. जह० खेत्तं । अजह० लोग० असंखे०भागो सचलोगो वा । सम्म० जह० खेत्तं । अजह० लोग असंख० भागो छचोहसः ।। ६६९. पंचिंदियतिरिक्खतिए सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खोपं । सेसपय० जह० खेत्तं । अज० लोग० असंखे भागो सबलोगो वा । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जामणुसअपज्ज. सधपयडी० जह० खेत्तं । अजह० लोग. असंखे०भागो सबलोगो वा। मसतिय० पंचिदियतिरिक्खतियभंगो। चरि सम्म० जह• अजह • लोग असंखे०भागो। ६६७०. बेमेश्सलसकाठमाणोका दिमागवत्ती म्जह ० लोग. असंखे०. भागो अह-परचोद्दस० | एवं मिच्छ । गवरि जह• अदुचौदस | सम्म० जह० खेत्तं । अजह लोग० असंखे भागो अदुचोद्दस० । सम्मामि० जह० अजह० लोग० सातवी पृथिवीतक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए । पहली पृथिवीमें स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ६६६८. तिर्योंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, साल नोकषाय और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । स्त्रीवेद और पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकवें असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वा जघन्य स्थितिके उदीरकोका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और प्रसनालीके चौदह भागोंमेंसे कुछ कम छह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। ६६६. पन्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें सम्यक्त्व और सभ्यग्मिध्यात्वको जघन्य और अजघन्य स्थितिके उदीरकोंका मंग सामान्य तिर्यशांके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जयन्य स्थितिके उदारकीका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकाने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यन्त्र अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सब प्रकृतियोंकी जघन्य स्थिति के उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यत्रिको पञ्चन्द्रिय तिर्यचत्रिकके समान भंग है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी जघन्य और अजयन्य स्थितिके उदीरकाने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। १६७०. देवोंमें सोलह कपाय और आठ नोकपायोंकी जघन्य स्थिति के उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजन्य स्थितिके उदीरकोंने लोकके असंख्यातवें भाग तथा असनालीके चौदह भागॉमसे कुछ कम पाठ और नौ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसीप्रकार मिथ्यात्व- . की अपेक्षा स्पर्शन जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंने प्रसनालीके चौदह भागामसे कुछ कम आठ भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्वकी जयन्य स्थितिके उदीरकोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अजघन्य स्थितिके उदीरकांने लोक
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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