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________________ २८३ गा० ६२] उत्तरपयदिद्विदिउदीरणाए सरिणयासो णिय० उदी० णिय० जहण्णा । एवं रदीए । एवमरदि-सोग० । ६६२०. भयस्स जह• डिदिसदीमिच्छाम्पहुंएफ सुमधुशायरमणताहयंधीभंगो। सोलसक० मिच्छत्तभंगो । दुगुला० सिया उदी । जदि उदी०, णिय० जहण्णा । एवं दुगुंछाए। १६२१. गवसजह. विदिउ० मिच्छ०-सोल सक०-भय-दुगुका० हस्सभंगो । हस्स-रदि-अादि-सोग० सिया० उदी० । जदि उदी०, णिय० अजह बिट्ठाणपदिदा असंखे० भागम्भ० संखे गुणब्भ० वा । ६२२. मणुमतिए ओघं । वरि बारसक०-छण्णोक०-पंचिंतिरिक्खभंगो । पन्ज० इत्यिवे. णस्थि । मणुसिणीसु इस्थिवेदो धुवो कायव्यो । ६२३. देवेसु मिच्छ• जह. विदिउ० सोलसक० अट्ठयोक. सिया उदी। जदि उदी०, णिय. अज० संखे०गुणा । एवं सम्मामि० | णवरि अणताणु०४ पस्थि । सम्म० पंचिदियतिरिक्खभंगो । ६६२४. अवंताणु०कोध० जह. विदिउदी० मिच्छ. णिय. उदी० णिय० अजह संख०गुणभ० । तिण्हं कोधारा णिय उदी०, जह, अजह । जह० अजह इसीप्रकार रतिको जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष कहना चाहिए । तथा इसीप्रकार अरति और शोकको जघन्य स्थितिकी उदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष कहना चाहिए। ६६२०. भयकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवके मिथ्यात्व, चार नोकषाय और नपुसकवेदका भंग अनन्तानुबन्धी के समान है। सोलह, कषायका भंग मिथ्यात्वके समान है । जुगुःसाका कदाचिम् सदीरक है यदि उदीरक है तो नियमसे जघन्य स्थितिका जदीरक है। इसीप्रकार जुगुप्साकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६६२५. नपुसकवेदकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीके मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका भंग हास्यके समान है। हास्य, रति, अरवि और शोकका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। ६२२. मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि बारह कषाय और छह नोकपायका भंग पछेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। पर्याप्तकोंमें स्त्रीवेदकी उदीरणा नहीं है और मनुध्यिनियोंमें स्त्रीवेदको ध्रुव करना चाहिए। ६२३. देवोंमें मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव सोलह कषाय और पाठ नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है. तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार सम्यग्मिध्यात्वकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उदीरणा नहीं है। सम्यक्त्वका भंग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। ६२४. अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिका उदीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। तीन क्रोधोंकी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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