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________________ मादर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज गा० ६२] उत्तरपयदिद्विदिवतीरणाए सएिण्यासों ६१५. हस्स० जह० ढिदिउदी० मिच्छ० इथिवेदभंगो । सोलसक०-णस.. भय-दुगंछा० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय. अजह• संखे गुणब्भ० । इथिवे.. पुरिसवे० सिपा उदी । जदि उदी०, णिय० अजह विट्ठाणपदिदा असंखे०भागब्भ० संस्खे गुणमहिया वा । रदि णियमा जहण्णा । एवं रदीए । एक्मरदि-सोगाणं । भय-दुगुंछा० अगताणु०भंगो । णवरि सोलसक० सिया उदी । जदि उदी, जह० अनह० । जह• अजहण्णा समयुत्तरमादि कादूण जाव पलिदो० असंखे०भागभ० । णवुसवे० सत्तमपुढविभंगो। ६१६. पचितिरिक्खतिये मिच्छ-सम्म०-सम्मामि सनणोक० तिरिक्खोघं । अयंताणु० कोध० जह० हिदिउदी० मिच्छ० णिय० उदी० णिय. अजह ० असंखे०गुणभ । तिण्हं कोधाणं णिय० उदी०, जह० अजह । जह० अजह. समयुत्तरमादि कादण जाव पलिदो० असंखे०मागम० । भय-दुगुंडा० सिया उद्दी० । जदि उदी०, णिय. जहण्णा । सत्तणोक० सिया उदी० । जदि उदी०, णिय अज० असंखे भागभ० । एवं पण्णारसक० । भय-दुगुंछा०तिरिक्खोघं । गवरि सत्तणोक० ६१५. हास्यकी जघन्य स्थितिके उदीरक जीवके मिथ्यात्वका भंग स्त्रीवेदके समान है । वह सोलह कषाय, नपुंसकयेद, भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे संख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। स्त्रीवेद और पुरुषवेदका कदाचित् 'उदीरक है । यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक या संख्यातगुणी अधिक द्विस्थानपसित अजघन्य स्थितिका उदीरक है। रतिका नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार रतिकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। इसीप्रकार अरति और शोककी जघन्य स्थिति उदीरणाको मुख्य कर सग्निकर्ष जानना चाहिए । भय और जुगुप्साका भंग अनन्तानुबन्धीके समान है। इतनी विशेषता है कि वह सोलह कपायका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजघन्य स्थितिका उदीरक है तो जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिक स्थितिसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक तककी अजघन्य स्थितिका उदीरक है। नपुसकवेदका भंग सातवीं पृथिवी के समान है। १६१६. पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिभ्यात्व और सात नोकपायका भंग सामान्य तियश्चोंके समान है। अनन्तानुबन्धी क्रोधकी जघन्य स्थितिका दीरक जीव मिथ्यात्वका नियमसे उदीरक है जो नियमसे असंख्यातगुणी अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। वह तीन क्रोधका नियमसे उदीरक है जो नियमसे जघन्य या अजघन्य स्थितिका उदीरक है। यदि अजधन्य स्थितिका उदीरक है तो नियमसे जघन्यकी अपेक्षा एक समय अधिक स्थितिसे लेकर पल्यके असंख्यातवें भाग अधिक तककी अजघन्य स्थितिका उदीरक है। भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक हैं तो नियमसे जघन्य स्थितिका उदीरक है। सात नोकषायोंका कदाचित् उदीरक है। यदि उदीरक है तो नियमसे असंख्यातवें भाग अधिक अजघन्य स्थितिका उदीरक है। इसीप्रकार पन्द्रह कषायकी जघन्य स्थितिउदीरणाको मुख्य कर सन्निकर्ष जानना चाहिए। भय और जुगुप्साका भंग सामान्य
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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