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________________ जयश्वलासहिये कसायपाहुडे [ वेदगो ७ ? 1 १५५२. अंतरं दुविहं जह० उक्क० । उकस्से पयदं । दुविहो णि० - श्रोषेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ० श्रणंवा ०४ उक० द्विदीउदी० जह० अंतोमु०, उक० अरणंतकालमसंखेला पोग्गलपरियट्टा । अणुक० जह० एयस०, उक० वेळा हिसागरो० देखणाणि | सम्म० सम्मामि० उ० अणुक० द्विदिदी जी तो बहुत्तं णवरि सम्म० अणुक्क० जह० एयस दर्शक आचार्य श्री सुविहिासागर उ० उवडपो० परियई । अट्ठक० उक० विदिउदी ● जह० अंतोमु०, उक० अतकालमसंखे ० पोग्गल परियई । अणुक० जह० एयसमओ, उक्क० पुन्त्रकोडी देसूरणा । एवं चदुसंजल० । णवरि अणुक० जह० एयस०, उक० अंतो० | इथिवे० - पुरिसवे० उक० अणुक० डिदिउदी० जह० एयसमत्रो, उक्क० अतकालमसंखेजा पोग्गलपरियड्डा । एवं बुंस० । वरि अणुक० जह० एयस०, उक्क० सागरोवमसदपृधत्तं । एवं इस्स- रदीर्णं । णवारे अणुक० जह० एयसमओ, उक्क० तेत्तीस सागरोत्रमं सादिरेयं । एवमरदि-सोग० । णवरि ऋणुक० जह० एयस०, २५४ और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी जघन्य और उत्कृष्ट भवस्थितिप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । इनमें बारह कषाय और बह नोकपायोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा अपने स्वामित्व के अनुसार भवके अन्तिम समय में ही प्राप्त होती हैं, इसलिए यहाँ इनकी जघन्य स्थितिउदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है । $ ५५२. अन्तर दो प्रकारका है - जघन्य और उत्कृष्ट | उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे मिध्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क की उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो श्रसंख्यात पुलपरिवर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो छयासठ सागरप्रमाण है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यास्वको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जधन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है तथा उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । पाठ कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जन्य अन्तरकाल एक समय हूँ और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। इसीप्रकार चार संज्वलनोंका जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। श्रीवेद और पुरुषवेद. की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । इसीप्रकार नपुंसक के विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागर पृथक्त्वप्रमाणु हैं । इसीप्रकार हास्य और रतिके विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदीरणाका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक तेतीस सागर है। इसीप्रकार अरति और शोकके विषय में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट स्थितिउदास जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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