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________________ गा० ६२] अत्तरपडिद्विविउवीरणाए सामित्तं २३७ उदी० कस्स ? अण्णद० दसणमोहक्खवयस्स समयाहियावलियउदीरगस्स । सम्मामि० जह. द्विदिउदी० कस्म ? अण्णद० जो मिच्छाइट्ठी वेदगपाओग्गजहण्णविदिसंतऋम्मिश्रो सम्मामि० पडिवपणो अंतीमुहत्तं विगई सम्मामिच्छत्तद्धमणुपालिय चरिमसमयसम्मामिच्छाइद्विस्व तस्स जह० द्विदिउदी० । वारसक० जह० दिदिउदी० कस्स ? अण्णद्० बादरेइंदियस्स हदसमुप्पत्तियस्स जावदि सकं ताव संतकम्मस्स हेट्ठा बंधिद्ण समद्विदि वा वंधिदरग संतकम्म बोलेग वा प्रावलियादीदस्स । एवं भय-दुगुंछा० । णवरि वेआपलिपादीदस्स तस्स जह० । हस्स-रदि-अरदि-सोग० जह० द्विदिउदी० कस्स ? अण्णद० जो बादरेइंदियपच्छायदो हदसमुप्पत्तियो सण्णिपंचिंदिगपञ्जत्तएसु उबवण्णो तस्स अंतोषबुलुकवष्णलावसमाजविनिदिदी हातिण्हं वेदाणं जहर द्विदिउदी० कस्स ? अण्णद० उपसामगो खबगो वा अप्पप्पणो वेदेण सेढिमारूढो समयाहियावलियं उदीरेमाणयस्स तस्स जह० । चदुसंज० जह० डिदिउदीर० कस्स ? अण्णद० उक्सामगरस वा खवगस्स वा अप्पप्पणों कसाएहिं सेढिमारूढस्स समयाहियावलियउदी तस्स जहः ।। रहनेपर प्रथम उपरितन ) स्थितिकी उदीरणा करता है उसके जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। सम्यक्त्वकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? दर्शनमोहनीयको क्षपणा करनेवाला जो अन्यसर कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि जीव सम्यक्त्वकी एक समय अधिक एक आवलि स्थिति शेष रहनेपर उपरितन एक स्थितिकी उदीरणा करता है उसके जघन्य स्थिति उदीरणा होती है। सम्यस्मिथ्यात्वी जघन्य स्थिति उदारणा किसके होती है ? वेदकप्रायोग्य जघन्य स्थितिसत्कर्मवाले जिस अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीवको सभ्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुए उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल गया है, सम्यग्मिध्यात्वके कालका पालन करनेवाले उस सम्यग्मिध्याष्ट्रि जीवके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट स्थिति उतरणा हाती है। बारह पायकी जघन्य स्थिति उदीरणा किसके होती है ? इतसमुत्पत्तिक जिस अन्यतर पादर एकेन्द्रिय जीवने जमतक शक्य है तबतक सत्कर्मसे कम स्थितिका बन्ध किया है या समान स्थितिका बन्ध किया है, या सत्कर्मको बिताकर जिसे एक श्रावलि गया है उसके जघन्य स्थिति उदीरणा होती है। इसीप्रकार भय और जुगुप्साके विपमें जानना चाहिए । इतना विशेषता है कि जिसे दो पावलि काल गया है उसके भय और जुगुप्ताकी जयन्य स्थितिजदीरणा होती है। हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य स्थितिउदारणा किसके होती है ? जो अन्यतर इतसमुत्पत्तिक बादर एकेन्द्रियों से आकर संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुया है उसके वहाँ उत्पन्न होनेके अन्तर्मुहूर्तके अन्तमें उक्त प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिउदीरणा होती है। तीन वेदोंकी जघन्य स्थिति उदीरणा किसके होती है ? जो उपशामक या क्षपक अपने-अपने वेदसं श्रेणिपर आरूढ़ हुआ है, प्रथम स्थिति में एक समय अधिक एक प्रावलि स्थितिके शेष रहनेपर उपरितन स्थितिकी उदीरणा करनेवाले उसके उक्त वेदोंकी जघन्य स्थिति उदारणा होती है। चार संज्वलनकी जघन्य स्थितिउदीरणा किसके होती है ? जो उपशामक या ज्ञपक अपनी-अपनी कषायसे श्रेणिपर श्रारूढ़ हुआ है, प्रथम स्थिति में एक समय अधिक एक पावलि स्थितिके शेष रहनेपर उपरितन स्थितिकी उदारणा करनेवाले उसके चार संज्वलनकी जघन्य स्थिति उदीरणा होती है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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