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गा० ६२] उत्तरपयडिउदीरणाए ठाणाणं सेसाणियोगदारपरूषणा . १५६
१३४५. केण कारणेण ? बिसेसाहियकालभतरसंचिदत्तादो। णेदमसिद्धं, श्रोदरमाणयस्स लोभवेदगकालादो तस्सेब मायावेदगकालो विसेसाहियो त्ति परमागमचक्खूणं सुप्पसिद्धत्तादो ।
वपहं पवेसगा विसेसाहिया । ७६४६. कुदो ? मायावेदगकालादो विसेसाहियमाणवेदगकालम्मि संचिदजीवरासिस्स गहणादो।
बारसरहं पचेसगा विसेसाहिया ।
३४७. किं कारणं ? पुब्धिल्लसंचयकालादो विसेसाहियकोहवेदगकालम्मि अगदवेदपडिबद्धम्मि संचिदजीवरासिस्स गहणाहो ।
एगणवीसाए पवेसगा विसेसाहिया । १३४८, किं कारणं ? पुरिसवेद-छण्णोकसाए प्रोकड्डिय पुणो जाब इत्थिवेदं ण ओकडदि ताव एदम्मि काले पुब्बिलसंचयकालादो विसेसाहियम्मि संचिदजीवरासिस्स विवक्खियत्तादो।
बीसाए पवेसगा विसेसादिया।
३४९. कुदो मार्गइरिक्वेदमलाहिर्च अपुण्यक्जिीमागणबुसयवेदयाल श्रोकडदि तार एदम्मि काले पुचिल्लसंचयकालादो विसेसाहियम्मि संचिदजीवाणमिह म्गहणादो।
६३४५. योंकि, ये विशेष अधिक कालके भीतर सञ्चित हुए हैं। यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि उतरनेवाले जावके लोभवेदक कालसे उसीका मायावेदक काल विशेष अधिक है, यह बात परमागमरूप चनुवालोंके लिए सुप्रसिद्ध हैं।
* उनसे नौ प्रकृतियोंके प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं।
६३४६. क्योंकि यहाँ पर मायावेदक कालसे विशेष अधिक मानवेदक कालमें सश्चित हुई ज बराशिका ग्रहण किया है।
* उनसे बारह प्रकृतियों के प्रवेशक जीव विशेष अधिक है।
६३४६, क्योंकि पूर्वक सञ्चयकालसे विशेष अधिक अपगतवेदसे सम्बन्धित क्रोधवेदक कालमें सञ्चित हुई जीवराशिका ग्रहण किया है।
* उनसे उन्नीस प्रकृनियों के प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं।
३४८. क्योंकि पुरुषवेद और छह नोकपायोंका अपकर्षण कर पुनः जब तक स्रीवेदका अपकर्षण नहीं करता तब तक, जो कि पूर्वके सश्चय कालसे विशेष अधिक है ऐसे इस कालमें सम्बित हुई जीवराशि यहाँ पर विवक्षित है।
* उनसे बोस प्रकृतियों के प्रवेशक जीव विशेष अधिक हैं।
३४.. क्योंकि स्त्रीवेदका अपकर्षण कर जब तक नपुंसकवेदका अपकर्षण नहीं करता है तक्र तक पूर्वक सञ्चयकालसे विशेष अधिक इस सन्चयकालमें सहिचत हुए जीवोंका यहां पर ग्रहण किया है।
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