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४६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडै
[बंधगो६ संखेजलोगभागहारस्स देसघादिविसयत्तेणासंखेजगुणत्तभुवगमादो। एवं विक्खंभादो वि विक्खंभस्सोसंखेजगुणत्तं वत्तव्वं । कथं पुण गुणसंकमपरिणामेहितो अधापवत्तसंकमपरिणामट्ठाणाणमायामस्सासंखेजगुणत्तसंभवो ति णासंका कायव्या, सबघादिविसयगुणसंकमपरिणामट्ठाणेहितो वि देसघादीणमधापवत्तपरिणामपंतीए असंखेजगुणतावलंबणादो । ण च पुवपरूविदप्पाबहुएण सह विरोहो, तस्स सजादीयपयडिविसए पडिबद्धत्तादो । अहवा जइ वि एत्थतणपरिणामपंतिआयामो असखेजगुणहीणो होइ तो वि देसघादिपडिबद्धसतकम्मपक्खेवभागहारमाहप्पणास खेजगुणत्तमेदमविरुद्धं दडव्वं ।
8 रदीए पदेससंकमहापाणि विसेसाहियाणि ६८२३. कुदो ? पयडिविसेसादो। ॐ इत्थिवेदे पदेससंकमठाणाणि संखेजगुणाणि।।
८२४. सुगममेदं ? ओघम्मि परूविदकारणत्तादो। णवरि विज्झादसकमटाणाणि अस्सिऊणास खेजगुणत्तसं भवासकाए मिच्छत्तभंगाणुसारेण परिहारो वत्तव्यो ।
ॐ सोगे पदेससंकमहापाणि विसेसाहियाणि ।
क्योंकि वहाँके असंख्यात लोक भागहारसे यहाँका असंख्यात लोक भागहार देशघातिका विषय होनेसे असंख्यातगुणा स्वीकार किया है । इसी प्रकार विष्कम्भसे भी विष्कम्भ को असंख्यातगुणा कहना चाहिए।
शंका-गुणसंक्रमके परिणामोंसे अधःप्रवृत्तसंक्रमके परिणामस्थानोंका आयाम असंख्यातगुणा कैसे सम्भव है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सर्वघातिविषयक गुणसंक्रमके परिणामस्थानोंसे नी देशघातियोंको अधःप्रवृत्त परिणामपंक्तिके असंख्यात गुणेपनका अवलम्बन लिया गया है। ऐसा मानने पर पूर्व में कहे गये अल्पबहुत्वके साथ विरोध होगा यह भी नहीं है, क्योंकि वह सजातीय प्रकृतियोंके विषयमें प्रतिबद्ध है। अथवा यद्यपि यहाँ का परिणामपंक्ति श्रआयाम असंख्यातगुणा हीन है तो भी देशघातिसम्बन्धी सत्कर्मप्रक्षेपके भागहारके माहास्यवश यह असंख्यातगुणा अविरुद्ध जानना चाहिए।
* उनसे रतिमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक हैं।
८२३. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। * उनसे स्त्रीवेदमें प्रदेशसंक्रमस्थान संख्यातगुणे हैं।
६८२४. यह सूत्र सुगम है, क्योंकि ओघमें इसका कारण कह आये हैं। इतनी विशेषता है कि विध्यातसंक्रमस्थानोंका आश्रय कर असंख्यातगुणत्व कैसे सम्भव है ऐसी आशंका होने पर मिथ्यात्वके भंगके अनुसार परिहार कहना चाहिए।
* उनसे शोकमें प्रदेशसंक्रमस्थान विशेष अधिक है ।