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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ होज्ज तो असंखेजगुणवडीए तत्थ भुजगारसंभवं परूवेज । ण च तहा परूविदं, असंखेजभागवीए चेव पयदविसये भुजगारसंकमो ति णियमं कादूण तत्थ परूविदत्तोदो । तेण जाणामो जहा अधापवत्तचरिमसमयम्मि जहण्गपरिणामेण संकामिदजहण्णदव्वादो तत्थे. वुक्कस्सपरिणामेण संकामिददव्वं विसेसाहियं चेव होइ, दुगुणादिकमेणासंखेजगुणब्भहियं ण होइ ति।
६७६२, अपुचकरणम्मि पुण जहण्णपरिणामेण संकामिदजहण्णसंतकम्मणिबंधणजहण्णसंतकम्मट्ठाणादो तं चेव जहण्णसंस्तकम्ममुक्कसपरिणामेण संकामेमाणयस्स उकस्ससंकमदनमसंखेजगुणं होदि । कुदो एदं परिच्छिादि ति चे ? सुत्ताविरुद्धपुबाइरियवक्खाणादो । तदो उच्चिणिदण गहिदअधापवत्तचरिमसमयपरिणामट्ठाणेहिंतो अपुषः पढमसमयम्मि उच्चिणिदूण गहिदपरिणामट्ठाणाणि असंखेजगुणाणि त्ति सिद्धं । होंताणि वि अधापवत्तचरिमसमयपरिणामट्ठाणाणि असंखेजलोगगुणगारेण गुणिदमेत्ताणि होति ति घेत्तव्यं ।
७६३. संपहि एवमुच्चिणिदूण गहिदपरिणामट्ठाणाणमपुचपढमसमए परिवाडीए रचणं कादण जहण्णसंतकम्मं धुवभावेणावलंबिय परिणामट्ठाणमेत्ताणि चे संकमट्ठाणाणि असंखेजलोगभागड्डीए समुप्पाएयवाणि । एवमुप्पाइदे पढमपरिवाडी समत्ता। संक्रम कहा है वह असंख्यात भागवृद्धिरूप ही होता है यह कहा है। यदि विध्यातसंक्रमके विषयमें भी असंख्यातगुणवृद्धिका निमित्तभूत परिणाम सम्भव होवे तो असंख्यातगुणवृद्धिके द्वारा वहाँ पर भुजगारसंक्रमकी प्ररूपणा की जाती। परन्तु वैसा नहीं कहा है, क्योंकि असंख्यातभागवृद्धि रूपसे ही प्रकृत विषयमें भुजगारसंक्रम होता है ऐसा नियम करके वहाँ पर प्ररूपणा की है। इससे हम जानते हैं कि अधःप्रवृत्तके अन्तिम समयमें जघन्य परिणामके द्वारा संक्रम कराये गये जघन्य द्रव्यसे वहीं पर उत्कृष्ट परिणामके द्वारा संक्रमित कराया गया द्रव्य विशेष अधिक ही होता है, द्विगुण आदि क्रमसे असंख्यातगुणा नहीं होता।
६७६२. अपूर्वकरणमें तो जघन्य परिणामके द्वारा संक्रमित कराये गये जघन्य सत्कर्मनिमित्तक जघन्य संक्रमस्थानसे उसी जघन्य सत्कर्मको उत्कृष्ट परिणामके द्वारा संक्रम करनेवाले जीवके उत्कृष्ट संक्रम द्रव्य असंख्यातगुणा होता है ।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-सूत्रके अविरुद्ध पूर्वाचार्योंके व्याख्यानसे जाना जाता है। इसलिए उठाकर प्रहण किये गये अधःप्रवृत्तके अन्तिम समयसम्बन्धी परिणामस्थानोंसे अपूर्वकरणके समयमें उठाकर ग्रहण किये गये परिणामस्थान असंख्यातगुणे होते हैं यह सिद्ध हुआ। ऐसा होते हुए भी अधःप्रवृत्तके अन्तिम समयमें जो परिणामस्थान होते हैं वे असंख्यात लोकप्रमाण गुणकारसे गुणित
ता यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
६७६३. अब इस प्रकार उठाकर ग्रहण किये गये परिणामस्थानोंकी अपूर्वकरणके प्रथम समयमें रचना करके तथा जघन्य सत्कर्मका ध्रवरूपसे अवलम्बन करके परिणामस्थानप्रमाण हो संक्रमस्थानोंको असंख्यात लोक भागवृद्धिके द्वारा उत्पन्न करना चाहिए । इस प्रकार उत्पन्न करने पर प्रथम परिपाटी समाप्त हुई।