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गा०५८
उत्तरपयडिपदेससंकमे पदणिक्खेवो ६६४१. सुगमं ।
ॐ जेसिं से काले प्रावलियमेत्ताणं समयपबद्धाणं पदेसग्गं संकामिज हिदि ते समयपबद्धा तप्पाओग्गजहाणा ।
६६४२ एतदुक्तं भवति–जेसिमावलियमेतणवकबंधसमयपबद्धाणं बंधावलियादिक्कतसरूवाणं वड्डिसमयं पेक्खिऊणाणंतरसमए संकमो भविस्सदि ते समयपबद्धा सगबंधकाले चे तप्पाओग्गजहण्णजोणेण बंधावेयवा, अण्णहा सव्वुक्कस्सहाणीए असंभवादो। एदस्सेवत्थस्सोवसंहारबक्कमुत्तरं
* एदीए परूवणाए सव्वसंकमं संछुहिदण जस्स से काले पुव्वपरूविदो संकमो तस्स उक्कस्सिया हाणी कोहसंजलणस्स।
६६४३. गयत्थमेदं सुत्तं ।
8 तस्सेव से काले उक्कस्सयमवट्ठाणं।
६६४४. तस्सेव हाणिसामियस्स से काले बंधावलियादिक्कतणवकबंधंतरसंबंधेण तेत्तियमेत्तं संकामेमाणयस्स उकस्सावट्ठाणसामित्तं दट्टव्यं, उक्कस्सहाणिपमाणेणेव तत्थावट्ठाणदंसणादो।
ॐ जहा कोहसंजलणस्स तहा माण-मायासंजलण-पुरिसवेदाणं । ६६४१. यह सूत्र सुगम है।
* उत्कृष्ट वृद्धिके अनन्तर समयमें आवलिमात्र जिन समयप्रबद्धोंके प्रदेशाग्र संक्रमित होंगे वे समयप्रबद्ध तत्प्रायोग्य जघन्य होते हैं ।
६६४२. कहनेका यह तात्पर्य है कि जो प्रावलिमात्र नवक समयप्रबद्ध बन्धावलिको उल्लंघन कर स्थित हैं उनका वृद्धि समयको देखते हुए अनन्तर समयमें संक्रम होगा उन समयप्रबद्धोंको अपने बन्धकालमें ही तत्प्रायोग्य जघन्य योगके द्वारा बन्ध कराना चाहिए, अन्यथा सर्वोत्कृष्ट हानि नहीं हो सकती । अब इसी अर्थका उपसंहार करते हुए आगेका वाक्य कहते हैं
. * इस प्ररूपणाके अनुसार सवसंक्रमके आश्रयसे संक्रम करके जिसके तदनन्तर समयमें पहले कहा हुआ संक्रम होता है उसके क्रोधसंज्वलनकी उत्कृष्ट हानि होती है।
६६४३. यह सूत्र गतार्थ है। * उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है ।
६६४४. उत्कृष्ट हानिके स्वामी उसी जीवके तदनन्तर समयमें बन्धावलिको उल्लंघन कर स्थित हुए दूसरे नवकबन्धके सम्बन्धसे उतने ही द्रव्यका संक्रम करनेवाले जीवके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामित्व जानना चाहिए, क्योंकि वहाँ पर उत्कृष्ट हानिप्रमाण ही अवस्थान देखा जाता है। ___* जिस प्रकार क्रोधसंज्वलनकी उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा की है उसी प्रकार मान संज्वलन, माया संज्वलन और पुरुषवेदकी उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा जाननी चाहिए ।