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________________ to ५८ ] उत्तरपयडिपदेसकमे पदणिक्खेवो ३६१ * एवरि अप्पप्पणो चरिमसमयसंकामगो होदूण से काले मदो देवो जादो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्कस्सिया हाणी । ९ ६३४. सुगममेदं । * अहं कसायाणमुक्कस्संयमवद्वाणं कस्स १ ९ ६३५. सुगमं । * अधापवत्त संकमेण श्रवदिकामगो जादो तस्स उक्कस्सयमवद्वाणं । ९ ६३६. एदस्स सुत्तस्सत्थे भण्णमाणे अनंतारणुबंधीणमुक्कस्सा वट्ट (णसामित्तसुत्तस्सेव परूवणा कायन्त्रा, विसेसाभावादो । तप्पा ओग्गउक्कस्सएण वड्डिदूप से काले * कोहसंजलणस्स उक्कस्सिया वड्डी कस्स ? 8 ६३७. सुगमं । * जस्स उक्कस्सओ सव्वसंकमो तस्स उपस्सिया वड्डी । ६ ६३८. गुणिदकम्मं सियलक्खणाणूणाहिएणागंतूण मणुसेसुप्पत्रिय सव्वलहु खवणाए अन्भुट्ठिदस्स कोहसंजलणचिराणसंतकम्मं सव्वसंकमेण संछुहमाणयस्स उक्कस्सओ * किन्तु इतनी विशेषता है कि अपना अपना अन्तिम समयवर्ती संक्रामक होकर तदनन्तर समय में मरा और देव हो गया, इस प्रथम समयवर्ती देवके उत्कृष्ट हानि होती है। ६६३४. यह सूत्र सुगम है I * आठ कषायोंका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? ६६३५. यह सूत्र सुगम है । * तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट अधःप्रवृत्तसंक्रमके द्वारा वृद्धि करके तदनन्तर समय में अवस्थित संक्रामक हो गया, उसके उत्कृष्ट अवस्थान होता है 1 ९६३६. इस सूत्र के अर्थका कथन करनेपर अनन्तानुबन्धियोंके उत्कृष्ट अवस्थानके स्वामित्व का कथन करनेवाले सूत्र के समान प्ररूपणा करनी चाहिए, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता है। * क्रोधसंज्वलनकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? ६६३७. यह सूत्र सुगम है । * जिसके उसका उत्कृष्ट सर्वसंक्रम होता है उसके उत्कृष्ट वृद्धि होती है । ६३८. न्यूनाधिकता से रहित गुणितकर्माशिक लक्षणसे आकर मनुष्यों में उत्पन्न होकर अतिशीघ्र क्षपणा के लिए उद्यत हो क्रोध संज्वलन के प्राचीन सत्कर्मका सर्वसंक्रमके द्वारा सक्रम करनेवाले जीवके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम होता है । उसीके उत्कृष्ट बृद्धिके स्वामित्वका निश्चय करना
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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