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________________ गा०५८] उत्तरपडिपदेससंकमे पदणिक्खेवो ३७६ * एत्तो पदणिक्खेवो। . ५६६. एतो भुजगारपरिसमत्तीदो अणंतरं पदणिक्खेवो अहिकओ ति दट्टयो। को पदणिक्खेयो णाम ? पदाणं णिक्खेगो पदणिक्खेवो । जहण्णुकस्सबड्डि-हाणि-अवट्ठाणपदाण सामितादिणिदेसमुहेण गिच्छपकरणं पदणिक्खेतो ति भण्णदे। एवमहियारसंभालणं कादूण संपहि तन्धिसयाणमणियोगद्दाराणमियत्ताबहारणमुत्तरसुत्तं भणइ ॐ तत्थ इमाणि तिषिण अणियोगद्दाराणि। हु ६००. तत्थ पदणिक्खेवे इमाणि भणिस्समाणाणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि णादवाणि भवंति, अणियोगद्दारणियमेण विणा सव्वेसि अत्थाहियाराणं परूवणाणुवत्तीदो । काणि ताणि तिण्णि अणिओगद्दाराणि ति पुच्छिदे तेसिं णामणिद्द सोकीरदे * तं जहा ६६०१. सुगमं । ॐ परूवणासामित्तमप्पाबहुगं च । ६६०२. एवमेदाणि तिण्णि चेवाणिओगद्दाराणि पयदत्थपरूवणाए संभवंति । तत्थ ताव परूषणं भणिस्सामो त्ति जाणावणद्वमुवरिमसुत्तणिहेसो * आगे पदनिक्षेपका अधिकार है। F५६६. 'एत्तो' अर्थात् भुजगारकी समाप्तिके बाद पदनिक्षेपका अधिकार है ऐसा यहाँ जानना चाहिए। शंका-पदनिक्षेप किसे कहते हैं ? समाधान—पदोंके निक्षेपको पदनिक्षेप कहते हैं। जघन्य और उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानरूप पदोंका स्वामित्व आदिके निर्देश द्वारा निश्चय करना पदनिक्षेप कहा जाता है। इस प्रकार अधिकारकी सम्हाल करके अब तद्विषयक अनुयोगद्वारोंकी इयत्ताका निश्चय करने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं * उसमें ये तीन अनुयोगद्वार होते हैं । ६६००. उस पदनिक्षेपमें ये आगे कहे जानेवाले तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं, क्योंकि अनुयोगद्वारोंका नियम किये बिना सब अर्थाधिकारोंकी प्ररूपणा नहीं बन सकती। वे तीन अनुयोगद्वार कौन हैं ऐसा पूछने पर उनका नामनिर्देश करते हैं * यथा । ६६०१. यह सूत्र सुगम है। * प्ररूपणा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । ६६०२. इस प्रकार प्रकृत अर्थकी प्ररूपणामें ये तीन अनुयोगद्वार ही सम्भव हैं। उनमेंसे सर्व प्रथम प्ररूपणाका कथन करते हैं इस बातका ज्ञान करानेके लिए आगेके सूत्रका निर्देश करते हैं
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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