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________________ गा ५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भजगारो ३७१ ६५६६. कुदो ? एगवारं पुरिसवेदावद्विदसंकमेण परिणदणाणाजीवाणं सुट्ट बहुअं कालमंतरिदाणमसंखेजलोगमेत्तकाले बोलीणे णियमा तब्भावसंभवोत्रएसादो। एवमोघो समत्तो।। ६५७०. संपहि आदेसपरूवणट्ठमुच्चारणं वत्तइस्सामो । अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसोओघे० आदेसे० । ओघेण मिच्छ, भज० अवत्त संका० जह० एयस०, उक्क० सत्तरादिदियाणि। अप्प०संका० णत्थि अंतरं। अवढि संका० जह० एयस०, उक० असंखेजा लोगा । एवं सम्म-सम्मामि० । णरि अद्वि० णस्थि । सम्म० भुज० सम्मामि० अवत्त० ज० एगस०, उक्क० चउघीसमहोरत्ते सादिरेगे । अणंताणु०४ विहत्तिभंगो । एवं बारसक०-भय-दुगु छा० । णवरि अवत्त० जह० एगस०, उक्क० वासपुधत्तं । एवं पुरिसवेद० । णवरि अबढि संका. जह० एयस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । एवमित्थिवेद-णस०-चदुणोक० । णवरि अबढि णस्थि । ६५७१. आदेसेण णेरइय० दंसणतियस्स ओघं । अणंताणु०चउक्क० ओघं । णवरि अहि० जह• एयसमओ, उक्क० असंखेज्जा लोगा । एवं बारसक०-भय-दुगुछ० ५६६. क्योंकि एक बार पुरुपवेदके अवस्थित संक्रमरूपसे परिणत हुए नाना जीवोंका अत्यन्त बहुत काल तक अन्तर हो तो भी असंख्यात लोकप्रमाण कालके जाने पर नियमसे तद्भाव सम्भव है ऐसा उपदेश है। इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई । ६५७०. अब आदेशका कथन करने के लिए उच्चारणाको बतलाते हैं-अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके भुजगार और प्रवक्तव्य पदके संक्रामक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सात रात्रि-दिन है। अल्पतर संक्रामकोंका अन्तरकाल नहीं है। अवस्थित संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके विषयमें भी जान लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यहाँ इनका अवस्थित पद नहीं है तथा सम्यक्त्वके भुजगार और सम्यग्मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके संक्रामक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक चौबीस दिन-रात्रि है । अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भंग विभक्तिके समान है। इसी प्रकार बारह कषाय, भय और जुगुप्साके विषयमें भी जान लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण है । इसी प्रकार पुरुषवेदके विषयमें भी जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अवस्थित संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार स्त्रीवेद, नपुंसकवेद और चार नोकषायोंके विषयमें भी जान लेना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनका अवस्थितपद नहीं है। ६५७१. आदेशसे नारकियों में तीन दर्शनमोहनीयका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके अवस्थित संक्रामकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है। इसी प्रकार बारह
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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