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गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं
२८१ २६५. एवमोघप्पाबहुअं परूविय संपहि आदेसपरूवणाए णिरयगइपडिबद्धमप्याबहुअं कुणमाणो सुत्तपबंधमुत्तरं भणइ ।।
* णिरयगईए सव्वत्योवो सम्मत्ते जहएणपदेससंकमो। ६२६६. सुगमं ।
8 सम्मामिच्छत्ते जहण्णपदेससंकमो असंखेज्जगुणो। ६२६७. एदपि सुगम, ओघम्मि परूविदकारणत्तादो। * अणंताणुबंधिमाणे जहएणपदेससंकमो असंखेज्जगुणो। ६२६८. एत्थ वि कारणमोघपरूवणाणुसारेण वत्तव्यं । * कोहे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * मायाए जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ। * लोभे जहएणपदेससंकमो विसेसाहिओ । ६२६६. एदाणि तिणि वि सुत्ताणि सुबोहाणि । * मिच्छत्ते जहएणपदेससंकमो असंखेनगुणो।
६ २७०. दोण्हमेदेसि जइवि थोवण तेत्तीससागरोवमेत्तगोवुच्छागालणेण सम्माइटिचरिमसमयम्मि विज्झादसंकमेण जहण्णसामितमविसिटुं तो वि पुचिल्लादो एदस्सासंखेज्जगुणत्तमविरुद्धं, अधापवत्तभागहारसंभवासंभवं कय विसेसोवत्तीदो।
६२६५. इस प्रकार ओघ अल्पबहुत्वका कथन करके अब आदेश अल्पबहुत्वका कथन करने पर नरकगतिसे सम्बद्ध अल्पबहुत्वको करते हुए आगेका सूत्रप्रबन्ध कहते हैं
* नरकगतिमें सम्यक्त्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम सबसे स्तोक है । ६२६६. यह सूत्र सुगम है।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । .६२६७. यह भी सुगम है, क्योंकि ओवप्ररूपणाके समय इसके कारणका कथन कर आये हैं।
* उससे अनन्तानुबन्धीमानका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है । ६२६८. यहाँ पर भी कारणका कथन ओघप्ररूपणाके अनुसार कहना चाहिए । * उससे अनन्तानुवन्धी क्रोधका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी मायाका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। ६२६६. ये तीनों ही सूत्र सुबोध हैं। * उससे मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है ।
६ २७०. इन दोनोंका ही यद्यपि कुछ कम तेतीस सागरप्रमाण गोपुच्छाओंके गलानेसे सम्यग्दृष्टिके अन्तिम समयमें विध्यातसंक्रमके द्वारा जघन्य स्वामित्व अवस्थित है तो भी पहलेसे यह असंख्यातगुणा है इसमें कोई विरोध नहीं आता, क्योंकि अधःप्रवृत्तभागहारकी सम्भावना और असम्भावनाके निमित्तसे यह विशेषता बन जाती है ।