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________________ २६२ जयधवलासहिदे कषायपाहुडे [बंधगो ६ ६१६६. कालो दुविहो-जहण्णमुक्कस्सं च । उक्स्से पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मिच्छ०-सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० उक्क० पदे०संका० केवचिरं० १ जह० एयसमओ। उक० संखेजा समया । अणुक्क० सव्वद्धा । सम्म०अणंताणु० चउक्क० उक्क० पदे०संका० जह० एयस० । उक्क० आवलि० असंखे०. भागो । अणुक्क० सधद्धा । ६ २००. आदेसेण णेरइएसु सव्वपयडी० उक्क० पदे०संका० जह० एयस० । उक० आवलि० असंखे०भागो। अणुक्क० सव्वद्धा । एवं सत्रणेरइय-सव्यतिरिक्ख०-देवा जाव सहस्सार ति । मणुसतिय आणदादि सब्वट्ठा ति सबपयडी० उक्क० पदे०संका० सम्यग्मिध्यात्यके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण न बतलाकर मात्र लोकके असंख्यातवें भामप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण बतलाया है। शेष कथन सुगम है। ६१६६. काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धी चतष्कके उत्कृष्ट प्रदेशों के संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है। विशेषार्थ—ोघसे मि यात्व आदि २३ प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम मनुष्योंमें क्षपणाके समय प्राप्त होता है । यह सम्भव है कि नाना मनुष्य एक साथ इनका उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम करें और दूसरे समयमें अन्य मनुष्य न करें। साथ ही यह भी सम्भव है कि नाना मनुष्य अलग-अलग संख्यात समय तक इनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम करते रहें, इसलिए इनके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्कका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम सातवें नरकके नारकी करते हैं। ये जीव एक समय तक इनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम करके द्वितीयादि समयोंमें अन्य जीव न करें यह तो सम्भव है ही। साथ ही यहाँ पर सम्यक्त्वका उपक्रमणकाल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होनेसे इनका उत्कृष्ट प्रदेश संक्रम इतने काल तक भी सम्भव है, इसलिए ओघसे इनके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवो .. जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । सभी अट्ठाईस प्रकृतियों के अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है यह स्पष्ट ही है। ६२००. आदेशसे नारकियोंमें सब प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, सामान्य देव और सहस्त्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । मनुष्यत्रिक और आनतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका जवन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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