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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ बंधगो ६ ११०३. तिरिक्खेसु उकस्सभंगो। णवरि हस्स -रदि- अरदि-सोग - पुरिसवे० जह० पदे० जहण्णु० एयस० । अज० जह० अंतोमु०, उक्क० अनंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । पंचिदियतिरिक्खतिय० उकस्सभंगो | णवरि हस्स -रदि- अरदि सोग - पुरिसवे ० अजह० जह० अंतोमु० । ६ १०४. पंचिंदियतिरिक्खअपज ० - मणुस अपज : सोलसक० -भय- दुगु छा० जह० पदे ० संका ० जणु ० [० एयस० । अज० जह० खुद्दाभवग्गहणं समयूर्ण, उक्क० अंतोमु० । सम्म० - सम्मामि० जह० पदे०संका० जहण्णु० एयस० । अज० जह० एगस ०, उक्क ० अंतोमु० । सत्तणोक० जह० पदे० संका • जहण्गु० अंतोमु० । २२० विशेषार्थ — पूर्व में सामान्य नारकियोंमें कालका स्पष्टीकरण कर आये हैं । उसी प्रकार यहाँ भी कर लेना चाहिये । मात्र यहाँ पर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य व उत्कृष्ट काल जो जघन्य व उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है सो इसका कारण यह है कि इन नरकोंमें उक्त प्रकृतियोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम जघन्य स्थितिवालोंमें नहीं होता, अतः यहाँ पर इन प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य व उत्कृष्ट काल जघन्य व उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण बन जाता है। शेष कथन सुगम है । १०३. तिर्यों में उत्कृष्टके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि हास्य, रति, अरति, शोक और पुरुषवेदके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अनन्त काम है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक उत्कृष्टके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि हास्य, रति, रति, शोक और पुरुषवेदके अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थतिर्यों और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक हास्य आदि पाँच नोकषायका जवन्य प्रदेशसंक्रम ऐसे जीवके होता है जो क्षपितकर्माशिक जीत्र विपरीत जाकर तिर्यों में उत्पन्न होता है | उसमें भी उत्पन्न होने के अन्तमुहूर्तबाद होता है। तथा इसके पहले इन प्रकृतियोंका तमुहूर्त तक जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है, इसलिए यहाँ पर इन प्रकृतियोंके अजघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष सब काल अपने अपने स्वामित्वको ध्यान में रखकर उत्कृष्टके समान घटित कर लेना चाहिए । § १०४. पञ्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तकों में और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सोलह कषाय, भय और जुगुप्सा के जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । जघन्य प्रदेश - संक्रामकका जघन्य काल एक समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्य है । सात नोकषायके जघन्य प्रदेशसंक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेश संक्रामकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । विशेषार्थ — उक्त जीव में सोलह कषाय, मय और जुगुप्साका जघन्य प्रदेशसंक्रम प्रथम समयमें होता है, इसलिए यहाँ इनके जघन्य प्रदेशसंक्रमका जघन्य काल एक समय कम तुल्लक
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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