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________________ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्त ६२८. एत्तो अणंतरसामित्तमणुवत्तइस्सामो ति पइण्णासुत्तमेदं । * मिच्छत्तस्स उकस्सयपदेससंकमो कस्स ? ६२६. सुगमं। . * गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्वविदो। ६३०. जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमपुढवीदो उव्वट्टिदो सो पयदुक्कस्ससंकमदव्यसामिओ होदि ति सुत्तत्थसंबंधो । किमट्ठमेसो तत्तो उवट्टाविदो ? ण, णेरइयचरिमसमए चेव पयदुक्कस्ससामित्तविहाणोवायाभावेण तहाकरणादो। कुदो तत्थ तदसंभवोचे ? मणुसगदीदो अण्णत्थ ईसणमोहक्खवणाए असंभवादो । ण च दंसणमोहक्खवणादो अण्णत्थ सव्वसंकमसरूवो मिच्छत्तुक्कस्सपदेससंकमो अत्थि तम्हा गुणिदकम्मंसिओ सत्तमपुढवीदो उवट्टिदो त्ति सुसंबद्धमेदं । * दो तिषिण भवग्गहणाणि पंचिंदियतिरिक्खपजत्तएसु उववएणो। ६३१. किमट्ठमेसो पंचिंदियतिरिक्खेसुप्पाइदो ? ण सत्तमपुढवीदो उपट्टिदस्स दो-तिण्णिपंचिंदियतिरिक्खभवग्गहणेहिं विणा तदणंतरमेव मणुसगदीए उप्पजणासंभवादो। २८. इससे आगे स्वामित्वको बतलावेंगे इस प्रकार यह प्रतिज्ञासूत्र है। * मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमका स्वामी कौन है ? ६२६. यह सूत्र सुगम है। * जो गुणितकर्मा शिक जीव सातवीं पृथिवीसे निकला । ६३०. जो गुणितकर्मा शिक जीव सातवीं पृथिवीसे निकला वह प्रकृत उत्कृष्ट संक्रमद्रव्यका स्वामी है ऐसा सूत्रका अर्थके साथ सम्बन्ध कर लेना चाहिए। शंका-इस जीवको वहाँसे किसलिए निकाला है। समाधान नहीं, क्योंकि नारकियोंके अन्तिम समयमें ही प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वके विधानका अन्य उपाय न होनेसे वैसा किया है। शंका-वहाँ अर्थात् नरकमें उत्कृष्ट स्वामित्व असम्भव क्यों है ? समाधान-क्योंकि मनुष्यगतिके सिवा अन्यत्र दर्शनमोहनीयकी क्षपणा होना असम्भव है और दर्शनमोहनीयकी क्षपणाके सिवा अन्यत्र सर्वसंक्रमरूप मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम पाया नहीं जाता, इसलिए गुणितकर्मा शिक जीव सातवीं पृथिवीसे निकला इस प्रकार यह सूत्र सुसम्बद्ध हैं। * वहाँसे निकलकर तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च पर्याप्तकोंमें दो-तीन भव धारण करके उत्पन्न हुआ। ६ ३१. शंका-इसे पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चोंमें किसलिए उत्पन्न कराया है ? समाधान नहीं, क्योंकि सातवीं पृथिवीसे निकला हुआ जीव पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंमें दोतीन भव धारण किये बिना वहाँसे निकलनेके बाद ही मनुष्यगतिमें नहीं उत्पन्न हो सकता । २३
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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