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गा० ५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पंचविइसकमअप्पाबहुअणिदेसो १७३ .
ॐ विज्झादसंकमे पदेसम्ममसंखेज्जगुणं ।
६ १८. कुदो ? दोण्हमेदेसिगुलासंखेजभागपडिभागियत्ते समाणे वि पुचिल्लभागहारादो विज्झादभागहारस्सासंखेजगुणहीणत्तब्भुवगमादो।
* अधापवत्तसंकमे पदेसग्गमसंखेजगुणं । ६१६. कि कारणं ? पलिदोवमासंखेजभागपडिभागियत्तादो। ॐ गुणसंकमे पदेसग्गमसंखेनगुणं ।।
२०. किं कारणं ? पुबिल्लभागहारादो एदस्स असंखेजगुणहीणभागहारपडिवद्धत्तादो।
8 सव्वसंकमे पदेसग्गमसंखेनगुणं ।
६२१. किं कारणं ? एगरूवभागहारपडिबरादो । एवं दबप्पाबहुअमुहेण पंचण्हमेदेसि संकमभेदाणं भागहारविसेसो वि जाणाविदो। तदो एदेण सूचिदभागहारप्पाबहुअंपि विलोमक्कमेण णेदव्वं । एवमेदेसि संकमपभेदाणं सरूवपरूवणं कादूण संपहि एदेण अट्ठपदेण उत्तरपयडिपदेससंकमाणुगमे कायव्वे तत्थ इमाणि चउवीसमणिओगद्दाराणिसमुकित्तणा भागाभागो जाव अप्पाबहुए ति । भुजगार-पदणिक्खेव-वडि-हाणाणि च । तत्थ समुक्त्तिणा दुविहा जहण्णकस्सभेएण । तत्थुक्कस्से पयदं । दुविहो गिद्देसो-ओपेण आदेसेण य । ओघेण अट्ठावीसं पयडीणमत्थि उकस्सओ पदेससंकमो । एवं चदुगदीसु ।
* उससे विध्यातसंक्रममें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ।
६१८. क्योंकि इन दोनोंको लानेका भागहार अंगुलके असंख्यातवें भागरूपसे समान होने पर भी पहलेके भागहारसे विध्यातसंक्रमका भागहार असंख्यातगुणा हीन स्वीकार किया गया है ।
* उससे अधःप्रवृत्तसंक्रममें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । ६ १६. क्योंकि इसे लानेके लिए भागहार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। * उससे गुणसंक्रममें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है ।
२०. क्योंकि पूर्व द्रव्यके भागहारसे यह द्रव्य असंख्यातगुणे हीन भागहारसे सम्बन्ध रखता है।
* उससे सनसंक्रममें प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है।
६ २१. क्योंकि यह द्रव्य एक अङ्कप्रमाण भागहारसे सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार द्रव्योंके अल्पबहुत्वके द्वारा इन पाँच संक्रमभेदोंके भागहारविशेषका भी ज्ञान करा दिया है । इसलिए इस द्वारा रचित हुए भागहारोंके अल्पबहुत्वको भी विलोमक्रमसे ले जाना चाहिए। इस प्रकार इन संक्रमके भेदोंके स्वरूषका कथन करके अब इस अर्थपदके अनुसार उत्तरप्रकृतिप्रदेशसंक्रमका अनुगम करते समय उस विषयमें समुत्कीर्तना और भागाभागसे लेकर अल्पबहुत्व तक ये चौबीस अनुयोगद्वार होते हैं । तथा भुजगार, पदनिक्षेप वृद्धि और स्थान ये अनुयोगद्वार और होते हैं। उनमेंसे समुत्कीर्तना दो प्रकारकी है-जघन्य और उत्कृष्ट । उनमेंसे उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका हैओघ और आदेश। ओघसे अट्ठाइस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम हे। इसी प्रकार च