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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ तदुभयसंभवे विरोहाणुवलंभादो । संतकम्मट्ठाणत्तमेदेसि किण्ण परूविदं ! ण, अणुत्तसिद्धत्तादो । एवमेदासि परूवणं कादूण संपहि विदियअणंतगुणहीणबंधट्ठाणस्स उवरिल्ले अंतरे पुवं व घादट्ठाणाणि होति ति परवेमाणो सुत्तमुत्तरं भणइ--
* विदियअपांतगुणहीणबंधट्ठाणस्सुवरिल्ले अंतरे असंखेजलोगमेत्ताणि घाट्ठाणाणि । ___५८१. कुदो ? एगछट्ठाणेणणाणुभागसंतकम्मियमादि कादूण जाव पच्छाणुपुवीए विदियअट्ठकट्ठाणे ति ताव एदेसु हाणेसु घादिजमाणेसु पयदंतरे असंखेजलोगमेत्तघादट्ठाणाणमुप्पत्तीए परिप्फुडमुवलंमादो ।
__® एवमणंतगुणहोणबंधट्ठाणस्सुवरि अंतरे असंखेज लोगमेत्ताणि घावट्ठाणाणि।
६५८२. एवमणंतरपरूविदविहाणेण असंखेजलोगमेत्तघादट्ठाणाणि ति चरिमादिहेद्विमासेसअटुंकुव्बंकाणमंतरेसु अब्बामोहेण परूवेयवाणि ति भणिदं होदि । णवरि सुहुमहदसमुप्पत्तियजहण्णट्ठाणादो उपरिमाणं संखेजाणमटुंकुव्वंकाणमंतरेसु हदसमुप्पत्तियसंकमट्ठाणाण
हैं जब तक पश्चादानुपूर्वीसे षट्स्थानमात्र उतर कर दूसरे अनन्तगुणहीन बन्धस्थानकी सन्धिको नहीं प्राप्त होते, क्योंकि वहाँ पर उन दोनोंके सन्भक होने में कोई विरोध नहीं पाया जाता।
शंका-ये सत्कर्मस्थान भी हैं ऐसा क्यों नहीं कहा ? समाधान नहीं, क्योंकि यह बात बिना कहे ही सिद्ध है।
इसप्रकार इनका कथन करके अब द्वितीय अनन्तगुणहीन बन्धस्थानके उपरिम अन्तरमें पहलेके समान घातस्थान होते हैं इस बातका कथन करते हुए आगेका सूत्र कहते हैं
* द्वितीय अनन्तगुणहीनबन्धस्थानके उपरिम अन्तरमें असंख्यात लोकप्रमाण घातस्थान होते हैं।
६५८१. क्योंकि षट्स्थानसे न्यून अनुभागसत्कर्मसे लेकर पश्चादानुपूर्वीसे द्वितीय अष्टांकस्थानके प्राप्त होने तक इन स्थानोंके घात करने पर प्रकृत अन्तरमें असंख्यात लोकप्रमाण घातस्थानोंकी उत्पत्ति स्पष्टरूपसे उपलब्ध होती है।।
* इस प्रकार प्रत्येक अनन्तगुणहीन बन्धस्थानके अन्तरालमें असंख्यात लोकप्रमाण घातस्थान होते हैं।
६५८२. इस प्रकार अनन्तर पूर्व कहे गये विधानके अनुसार अन्तिम आदि अधस्तन सब प्रयांक और उर्वकोंके अन्तरालोंमें असंख्यात लोकप्रमाण घातस्थानोंका व्यामोह रहित होकर कथन करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है । किन्तु इतनी विशेषता है कि सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी हतसमुत्पत्तिक जघन्य स्थानसे लेकर उपरिम संख्यात अष्टांक और उर्वकोंके अन्तरालोंमें हत