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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
§ ५६२. किं कारणं ? असंखेजगुणवढि कामयरासी आवलि० असंखे० भागमेतकालसंचिदो हो । किंतु थोक्सियो, एयछट्ठाण अंतरे चेय तव्त्रिसयणिबंधदंसणादो । अनंतगुणाकारासी पुण जइ वि एयसमयसंचिढ़ो तो वि असंखेज लोगमेतद्वाणपडिबद्धो । दो सिद्धदेसिं तत्तो असंखेजगुणत्तं ।
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गुणवसिंकामया असंखेज्जगुणा ।
६ ५६३. को गुणगारो ? अंतोमुहुत्तं । कुदो दो हमे सिमभिणविसयत्ते व अनंतगुणवसिंकामयकालस्स अंतोमुत्तपमाणोवएसे सुत्तबलेण तव्विणिण्णयादो । * वडिदसंकामया संखेज्जगुणा ।
§ ५६४. कुदो ? अनंतगुणवड्डिकालादो अवट्ठिदसंकमकालस्स संखेञ्जगुणत्तावलंबणादो । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोवा अांतगुणहाणिसंकामया । ९ ५६५. कुदो ? दंसणमोहक्खवयजीवाणं चेत्र तब्भावेण परिणामोवलंभादो ।
* अवत्तव्वसंकामया असंखेज्जगुणा ।
§ ५६२. क्योंकि असंख्यातगुणवृद्धिका संक्रमण करनेवाली राशि आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा संचित होकर भी स्तोक विषयवाली होती है, क्योंकि एक षट्स्थानके भीतर ही उसके विषयका सम्बन्ध देखा जाता है । परन्तु अनन्तगुणहानिका संक्रमण करनेवाली राशि यद्यपि एक समयमें संचित हुई है तो भी असंख्यात लोकप्रमाण षट्स्थानप्रतिबद्ध है, इसलिए उनसे ये श्रसंख्यातगुणे हैं यह सिद्ध हुआ ।
९ ५६६. कुदो ? पलिदोत्रमासंखेजभागमेत्तजीवाणं तब्भावेण परिणदाणमुवलंभादो | * अवडिदसंकामया असंखेजगुणा ।
* उनसे अनन्तगुणवृद्धिके संक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं।
६ ५६३. गुणकार क्या है ? अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि यद्यपि इन दोनोंका विषय एक है तो भी अनन्तगुणवृद्धिके संक्रामकोंका काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है इस उपदेशका निर्णय सूत्र के बलसे होता है ।
* उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव संख्यातगुणे हैं ।
६५६४. क्योंकि अनन्तगुणवृद्धिके कालसे अवस्थितसंक्रमका काल संख्यातगुणा पाया
जाता है।
* सम्यक्त्र और सम्यग्मिथ्यात्वकी अनन्तगुणहानिके संक्रामक जीव सबसे स्तोक हैं ।
§ ५६५. क्योंकि दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले जीवोंका ही उस रूपसे परिणमन उपलब्ध
होया है ।
* उनसे अवक्तव्यसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।
§ ५६६. क्योंकि पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण जीव उस रूपसे परिणमन करते हुए पाये
जाते हैं।
* उनसे अवस्थितसंक्रामक जीव असंख्यातगुणे हैं ।