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________________ गा०ye उत्तरपयडिअणुभागसंकमे पदणिक्खेवे सामित्त १३७ मवट्ठाणं होइ । कुदो ? पढमसमए जहण्णहाणिविसयीकाणुभागस्स विदियसमए तत्तियमेत्तपमाणेणावट्ठाणदंसणादो। एवं णqसयवेद-छएणोकसायाणं। ६५०५. सुगममेदमप्पणासुत्तं । एवमोघो समत्तो । ६५०६. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-बारसक०-णवणोक. जह० वड्डी कस्स ? अण्णदरस्स अणंतभागेण वडिदूण वड्डी, हाइदूण हाणी, एयदरत्थावट्ठाणं । अणंताणु०४ ओघं । सम्म० जह. कस्स ? अण्णदर० समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । एवं पढमपुढवि-तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खदो-देवा सोहम्मादि जाव सहस्सार ति । एवं छसु हेट्ठिमासु पुढवीसु । णवरि सम्म० णत्थि। एवं जोणिणी०-भवण०-वाण०-जोदिसि० । पंचिंतिरिक्खअपज-मणुसअपज. विहत्तिभंगो। मणुसतिय मिच्छ०-अट्ठक० जह० वड्डी कस्स ? अण्णद० सुहुमेइ दियपच्छायदस्स अणंतभागेण वढिदूण वड्डी, हाइदूण हाणी, एगदरत्थावट्ठाणं । सम्म०-सग्मामि०-अणंताणु०४ ओघं । चदुसंजल०–णवणोक० ओघं। जघन्य अवस्थान होता है, क्योंकि प्रथम समयमें जघन्य हानिके विषयभूत अनुभागका दूसरे समयमें उतने ही प्रमाणरूपसे अवस्थान देखा जाता है। * इसी प्रकार नपुसकवेद और छह नोकषायोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और जघन्य अवस्थानका स्वामी जानना चाहिए। ६५०५. यह अर्पणासूत्र सुगम है। ___ इसी प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। . ६५०६. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो अनन्तभागवृद्धिरूपसे वृद्धि करता है ऐसा अन्यतर जीव जघन्य वृद्धिका स्वामी है, तथा जो अनन्तभागहानिरूपसे हानि करता है ऐसा अन्यतर जीव जघन्य हानिका स्वामी है । तथा इनमेंसे किसी एक स्थानमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग आघ के समान है। सम्यक्त्वकी जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? जिसके दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें एक समय अधिक एक आवलि काल शेष है वह उसकी जघन्य हानिका स्वामी है। इसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकी, सामान्य तिर्यञ्च, पञ्चेद्रियतिर्यञ्चद्विक, सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे लेकर सहस्त्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए । इसी प्रकार नीचेकी छह पृथिवियोंमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि उनमें सम्यक्त्वका हानिसंक्रम नहीं होता। इसी प्रकार योनिनी तिर्यच, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए। पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है। मनुष्यत्रिकमें मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जिसने सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्यायसे भाकर अनन्तभागवृद्धिरूप वृद्धि की है ऐसा अन्यतर तीन प्रकारका मनुष्य जघन्य वृद्धिका स्वामी है, अनन्तभागहानि करने पर यही अन्यतर मनुष्य जघन्य हानिका स्वामी है और इनमेंसे किसी एक स्थल पर जघन्य अवस्थानका स्वामी है । सम्यक्त्व, सम्यग्मिध्वात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भंग ओघके समान है। चार संज्वलन और नौ नोकषायोंका भङ्ग भी ओघके समान है । किन्तु इतनी
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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