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________________ १३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ * खवयस्स चरिमसमयबंधचरिमसमयसंकामयस्स । ४६२. एत्थ चरिमसमयबंधो ति वुत्ते कोहतदियसंगहकिट्टिवेदयचरिमसमयबद्धणवकबंधाणुभागो धेत्तव्यो । तस्स चरिमसमयसंकामओंणाम माणवेदगद्धाए दुसमऊणदोआवलियचरिमसमए वट्टमाणो ति गहेयव्यं । तस्स कोधसंजलणाणुभागसंकमणिबंधणा जहणिया हाणी होइ। ॐ जहएणयमवट्ठाणं कस्स ? ६४६३. सुगमं। 8 तस्सेव चरिम अणुभागखंडए वट्टमाणयस्स। (४६४. तस्सेव खवयस्स जहण्णयमवट्ठाणं होइ त्ति सामित्तसंबंधो काययो । कदमाए अवत्थाए वट्टमाणस्स तस्स सामित्नाहिसंबंधो ? चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणयस्स । चरिमाणुभागखंडयं णाम किट्टिकारयचरिमावत्थाए घेत्तव्यं, उपरिमणुसमयोवट्टणाविसए खंडयघादासंभवादो। तदो दुचरिमाणुभागखंडयं घादिय चरिमाणुभागखंडयपढमसमए तप्पाओग्गहाणीए परिणदस्स विदियसमए पयदजहण्णसामित्तं दडव्यं । * अन्तिम समयमें हुए बन्धका अन्तिम समयमें संक्रम करनेवाला क्षपक जीव उसको जघन्य हानिका स्वामी है। ६४६२. यहाँ पर सूत्रमें 'अन्तिम समयमें हुआ बन्ध' ऐसा कहने पर उससे क्रोधकी तीसरी संग्रहकृष्टिका वेदन करनेवालके अन्तिम समयमें बँधे हुए नवकबन्धका अनुभाग लेना चाहिए। उसका अन्तिम समयमें संक्रमण करनेवाला ऐसा कहनेसे मानवेदक कालके दो समय कम दो आवलिके अन्तिम समयमें विद्यमान जीव लेना चाहिए। उसके क्रोघसंज्वलनके अनुभागसंक्रमसम्बन्धी जघन्य हानि होती है। * जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? ६४६३. यह सूत्र सुगम है। * अन्तिम अनुभागकाण्डकमें विद्यमान वही जीव जघन्य अवस्थानका स्वामी है। ६४६४. वही क्षपक जघन्य अवस्थानका स्वामी है इस प्रकार स्वामित्वका सम्बन्ध करना चाहिए। शंका-किस अवस्थामें विद्यमान हुए उसके स्वामित्वका सम्बन्ध होता है ? समाधान-अन्तिम अनुभागकाण्डकमें विद्यमान जीवके होता है । अन्तिम अनुभागकाण्डक कृष्टिकारककी अन्तिम अवस्था में होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि आगे प्रत्येक समयमें होनेवाली अपवर्तनाके स्थलपर काण्डकघातका होना असम्भव है। इसलिए द्विचरम अनुभागकाण्डकका घात करके अन्तिम अनुभागकाण्डकके प्रथम समयमें तत्प्रायोग्य हानिरूपसे परिणत हुए जीवके द्वितीय समयमें प्रकृत जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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