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गा० ५८]
उत्तरपयडिअणुभागसंकमे अप्पाबहुअं ॐ मायाए जहण्णाण भागसंकमो विसेसाहिओ।
लोभस्स जहणाण भागसंकमो विसेसाहित्रो। ३०८. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि। * हस्सस्स जहएणाणु भागसंकमो अपंतगुणो।
६३०६. सुहुमे दियहदसमुप्पत्तियकम्मादो अणंतगुणहीणो पुविल्लो णवकबंधाणुभागसंकमो । एसो वुण सुहुमाणुभागादो अणंतगुणो, असण्णिपंचिंदियहदसमुप्पत्तियकम्मेण णेरइएसु लद्धजहण्णभावत्तादो । तदो सिद्धमेदस्स तत्तो अणंतगुणत्तं ।
* रदीए जहणणाणु भागसंकमो अणंतगुणो। ६ ३१०. एत्थ सामित्तभेदाभावे वि पुरंगमकारणत्तेणाणतगुणत्तमविरुद्धं ।
® पुरिसवेदस्स जहएणाणु भागसंकमो अणतगुणो ।
६३११. एत्थ कारणं रदी रमणमेत्तुप्पाइया पलालग्गिसण्णिहसतिविसेसो पुण पुवेदो तदो सामित्तविसयभेदाभावे वि सिद्धमेदस्सागतगुणब्भहियत्तं ।
* इत्थिवेदस्स जहरणाणु भागसंकमो अणतगुणो । ६३१२. किं कारणं ? कारिसग्गिसरिसतिब्वपरिणामणिबंधणत्तादो।
* उससे अनन्तानुबन्धी मायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। ६३०८. ये सूत्र सुगम हैं।
* उससे हास्यका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
६३०६. अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी हतसमुत्पत्तिककर्मसे अनन्तगुणे हीन नवकबन्ध अनुभागसंक्रमरूप है और यह सूक्षम एकेन्द्रियसम्बन्धी अनुभागसे अनन्तगुणा है, क्योंकि यह असंज्ञी पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी हतसमुत्पत्तिकर्मके साथ नारकियोंमें जघन्यपनेको प्राप्त हुआ है, इसलिए यह अनन्तानुबन्धी लोभके जघन्य अनुभागसंक्रमसे अनन्तगुणा है यह सिद्ध होता है।
* उससे रतिका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है ।
६३१०. यद्यपि हास्यके जघन्य अनुभागसंक्रम और रतिके जघन्य अनुभागसंक्रमके स्वामीमें भेद है फिर भी उससे आगेका कारण होनेसे इसके अनन्तगुणे होनेमें कोई विरोध नहीं आता।
* उससे पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है।
६३११. यहाँ पर कारण यह है कि रति रमणमात्रको उत्पन्न करनेवाली है। परन्तु पुरुषबेद पलालकी अग्निके समान शक्ति विशेषरूप है, इसलिए इनके स्वामीमें भेद न होने पर भी उससे इसका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है यह सिद्ध होता है।
* उससे स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। ६३१२. क्योंकि यह कारीषकी अग्निके समान तीव्र परिणामोंसे उत्पन्न होता है ।
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