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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
§ २३१. तं जहा – एयजीवस्सुकस्सा णुभागसंकमकालमंतोमुहुत्तपमाणं ठविय तप्पा ओग्गपलिदोवमा संखेज्जभागमेत्ततदणुसंधाणवारसलागाहि गुणेयव्यं । तदो पयदुक्कस्स
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कालमाणमुपदि ।
* अणुक्कस्साणुभागसंकामया सव्वद्धा ।
$ २३२. कुदो ? सव्नकालम विच्छिण्गपवाह सरूवेणेदेसिम वाणदंसणादो । * एवं सेसाणं कम्माणं ।
९ २३३. जहा मिच्छत्तस्स पयदकालणिदेसो कदो तहा सेसकम्माणं पि कायन्त्रो, विसेसाभावादो | सामण्णणिद्देसेणेदेण सम्मत्त सम्म मिच्छत्ताणं पि पयदकालणिद्देसाइप्पसंगे तत्थ विसेससंभवपदुष्पायणङ्कमिदमाह -
* एवरि सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभागसंकामया सव्वद्धा । ९ २३४. कुदो ? सम्मत-सम्मामिच्छत्ताणमुकस्सा णुभागसंकामयवेदगसम्म इट्ठीणमुव्वेल्लमाणमिच्छाकीणं च पवाहयोच्छेदावलंभादो |
* अणुक्कस्साणुभागसंकामया केवचिरं कालादो होंति ६२३५. सुगमं ।
* जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
§ २३१. यथा – एक जीवके उत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामकसम्बन्धी अन्तर्मुहूत कालको स्थापित कर उसे नाना जीवोंसम्बन्धी उत्कृष्ट कालको प्राप्त करनेके लिए पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण शलाकाओं से गुणित करना चाहिए। इस प्रकार करनेसे प्रकृत उत्कृष्ट काल उत्पन्न होता है । * उसके अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है ।
९ २३२ क्योंकि सर्वदा अविच्छिन्न प्रवाहरूपसे मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट अनुभाग के संक्रामक जीवोंका अवस्था देखा जाता है ।
* इसी प्रकार शेष कर्मों का काल जानना चाहिए ।
६ २३३. जिस प्रकार मिथ्यात्व के प्रकृत कालका निर्देश किया है उसी प्रकार शेष कर्मोंका भी करना चाहिए, क्योंकि कोई विशेषता नहीं है । यह सामान्य निर्देश है। इससे सम्यक्त्व और सम्यग्मियात्वके प्रकृत कालके निर्देश में अतिप्रसङ्ग प्राप्त होने पर वहाँ कालकी विशेषताका कथन करने के लिए यह सूत्र कहते हैं
इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्यके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक जीवोंका काल सर्वदा है।
§ २३४. क्योंकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रमण करनेवाले बंदकसम्यदृष्टियोंके और उद्धं लना करनेवाले मिथ्यादृष्टियोंके प्रवाहकी व्युच्छित्ति नहीं पाई जाती । * उनके अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामक जीवोंका कितना काल है ? ९ २३५. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।