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जयपुर ( खानिया ) तस्वचर्चा अर्थ-जीवमें कम बद्ध है अथवा अबद्ध है इस प्रकारके विकल्पको तो मयपक्ष जानो, किन्तु जो पक्षातिक्रान्त (वक्त दोनों प्रकारके विकल्पोंसे रहित) कहलाता है वह समयसार अर्थात् निर्विकल्प शुद्ध आत्मतत्त्व है ॥१४॥
किन्तु जीवको इस प्रकार अनुभवको भूमिका न प्रमाणज्ञानका आलम्बन लेनेसे हो प्राप्त हो सकती है और न व्यवहारस्वरूप नयज्ञानके आलम्बनमें ही प्राप्त हो सकती है। वह तो मात्र निश्चयनयके विषयभूत एकमात्र ज्ञायकभावके आलम्बनसे ही होती है। यही कारण है कि मोक्षमार्गमें एकमात्र निश्चयनयको आश्रयणीय कहा है। आत्मानुभूति शनयस्वरूप कहने का कारण भी यही है। कहा भी है
आत्मानुभूतिरित्ति शुद्धनयात्मिका या शानानुभूचिरियमेव किलेति बृद्ध्वा । आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्पकंपमेकोऽस्ति नित्यमवोधधनः समंसात् ।।
-समयसार क. १३ अर्थ-इस प्रकार जो पूर्व कथित शुद्ध नयस्वरूप आत्माकी अनुभूति है बही वास्तबमें शानको अनुभूति है, यह जानकर तथा आत्मामें आत्माको निश्चल स्थापित करके, सदा सर्व और एक ज्ञानघन आत्मा है, इस प्रकार अनुभवना चाहिए।
श्री वीतरागाय नमः द्वितीय दौर
शंका १६ प्रश्न यह है-निश्चय और व्यवहारनयका स्वरूप क्या है ? व्यवहारनयका विषय असत्य है क्या ? असत्य है तो अभावात्मक है या मिथ्यारूप !
प्रतिशंका २ यह हमारा प्रश्न है, इसका उत्तर आपने ७ पृष्ठों में दिया है, परन्तु हमारे प्रश्नोंका कोई उत्तर नहीं है। आपके पृष्ठोंके उत्तग्में यह बात कहीं नहीं आई है कि व्यवहार नयका विषय असत्य है क्या ? असस्य है तो अभावात्मक है या मिथ्यारूप ? इसलिए आप हमारे प्रश्नोंका उत्तर देने की कृपा करें। आपने जो उत्तर दिया है वह भी शास्त्राधारसे विपरीत टहरता है। आपने लिखा है कि 'यह जीव अनादि अज्ञान यश संयोगको प्राप्त हए पदार्थों में न केवल एकत्यबुद्धिको करता आ रहा है। अपि तु स्वसहाय होने पर भी