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३१४
पु०
१२७
१२८
१२८
३
१३०
६१
१३३ १८
१३३
२२
१३७
पंक्ति
५
२
१३८
१३९
२५
२
५.
२
१४०
१४
१४३
५
૪૩ २१
१४५
३२
१४६ १९
૪૭
८
१५२
२०
१५५
६
१५९ ३१
१६५ १७
१६६
९
१६७
३२
३
१६८
१६८
४
१६८ १७
१७०
९
१७०
१७०
ܕ
११
जयपुर (खानिया) तस्वचर्चा और उसकी समीक्षा
शुद्धि
परन्तु उत्तरपक्षका यह कथन ठीक नहीं है दोनोंको अपने-अपने रूपसे
इस अपेक्षास
परन्तु मैं इसी प्रश्नोत्तरके निमित्तकारणको
अशुद्धि
उत्तरपक्षका यह कथन ठीक नही हैं। दोनों को समानरूपसे
इस अपेक्षापर
मैं इसी प्रश्नोत्तरके
निमित्तकारण
उसमें
इस विगमको
उसे पूर्वोक्त प्रकारसे प्रेरक और उदासीन (अप्रेरक) दो रूप में
इतना ज्ञातव्य
जो महत्त्व कपड़े का है वही और
उतना
होती है
अन्य अन्य रूप दजों
व्यंजनपर्यायस
परन्तु
अतः
कार्याव्यवहित पर्यायी
अण
लिखा है
छपक
पक्षमें
एक साथ
पूर्वपक्ष की
"अपने रूप" हो है "इस कथन की
निदिष्ट" इस विषयमें
कार्यरूप
उम्रका
गलत है। उपादादिको
उनमें
इस विषयको
उस कार्यकारिताको पूर्वोक्त प्रकारको प्रेरकता और अप्रेरकता ( उदासीनता) के रूप में माम्य करते हुए निमित्तके प्रेरक निमित्त और अप्रेरक ( उदासीन ) निमित्त ये दो भेद प्रयोगभेदके साथ कार्यभेदके आधारपर
इतना अवश्य ज्ञातव्य
जितना महत्व कपड़े का है उतना
होता है
अन्य-अन्यरूपताको प्राप्त दर्जी व्यंजनपयायें
X
यतः
कार्याव्यवहित पूर्व पर्यायको
ग्राह्य
लिया है
X
क्षपक
फेरमें
इसके साथ
उस पक्षकी
"अपने रूप" ही है" इस कयनकी निर्दिष्ट "इस विषयमें
कर्मरूप
उत्तरपक्ष का
गलत है, क्योंकि
इसी तरह उत्पादादिको