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जयपुर (खानिया) तस्वचर्चा और उसकी समीक्षा
चरित ये दो भेद स्वीकार करते हैं । परन्तु व्यवहारनमकी असद्भूतता के विषय में दोनोंकी दृष्टि भिन्न-भिन्न किया।
है, जिसे वाले यहीं
(ग) दोनों ही पक्ष स्वपरप्रत्यय कार्यकी उत्पत्ति में उपादानकारणभूत वस्तुको द्रव्यार्थिक निश्चयनयका विषय मानते है । इरा नमके आधारपर ही घटको उत्पत्तिमें उपादानकारणभूत मिट्टी द्रव्यार्थिक निश्चयनमका विषय सिद्ध होती है।
(घ) पूर्वपक्षकी मान्यता अनुसार उक्त कार्यको उत्पत्ति में उपादानकारणभूत वस्तुको सुक्ष्म दृष्टिसे कार्याध्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय और स्थूल दृष्टिसे कार्यव्यवहित पूर्वकी नानाक्षणवर्ती पर्याय पर्यायार्थिक निश्चयनय या अनुपचिरत सद्भूत व्यवहारनयका विषय सिद्ध होती है । जैसे घटकी उत्पत्ति सूक्ष्म दृष्टिसे मिट्टीको कार्यरूप घटपर्याय या अव्यवहित पूर्वक्षणवर्ती पर्याय और स्थूल दृष्टिसे उस पर्यायसे अव्यवहित पूर्वकी नालाक्षणवर्ती कुशूलपर्याय या तो पर्यायार्थिक निववयनयका विषय होती है या अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनयका विषय सिद्ध होती है । सम्भवतः उत्तरपक्षको भी यह बात मान्य होगी ।
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(च) पूर्वपक्ष की मान्यता के अनुसार उक्त कार्यकी उत्पत्ति में उपादानकारणभूत वस्तुकी सूक्ष्म दृष्टिसे कार्याध्यवहित कारणभूत पूर्णक्षणवर्ती पर्यायसे अथवा स्थूल दृष्टिसे कार्याञ्चवहित कारणभूत पूर्वकी नामाक्षणवर्ती पर्यायसे अव्यवहित पूर्वकी क्षणवर्ती था नानाक्षणवर्ती पर्याय परम्परया पर्यायार्थिक निश्चयनका अथवा उपचरित सद्भूत व्यवहारनयका विषय होती है। जैसे घटकी उत्पत्तिमें सूक्ष्म दृष्टिसे घट पर्यायसे अव्यवहितपूर्वकी एक क्षणवर्ती पर्यायसे भी अव्यवहित पूर्वकी क्षणवर्ती पर्याय या स्थूल दृष्टिसे कुशूलपर्यायसे अव्यवहित पूर्वको कोशपर्याय परम्परया पर्यायार्थिक निश्चयनयका अथवा उपचरित सद्भूत व्यवहारनयका विषय सिद्ध होती है । सम्भवतः उत्तरपक्षको यह बात भी मान्य होगी।
(छ) पूर्वपक्ष की मान्यता अनुसार उक्त कार्यकी उत्पत्ति में कार्यरूप परिणत होनेवाली वस्तुके कार्यरूप परिणत होने के अवसरपर बाह्य सामग्री भी सहायक होने रूपसे कारण सिद्ध होती हैं जो असद्भूत व्यवहारनयका विषय । इसमें भी साक्षात् और परम्परया कारणताका भेद पाया जाता है। अतः जो साक्षात् कारण हो वह तो अनुपचारित असद्भूत व्यवहारनयका विषय है और जो परम्परया कारण हो वह उपचरित असद्भूत व्यवहारनयका विषय है । इस व्यवस्थाको घटोत्पत्तिमें इस प्रकार समन्वित किया जा सकता है कि उस बटोत्पत्ति में मिट्टीकी तरह कुम्भकार, चक्र, दण्ड आदि भी कारण होते हैं । उनमेंसे मिट्टी रूप परिणत होने के आधारपर कारण होती है और कुम्भकार, चक्र, दण्ड आदि उनमें सहायक होने के आधारपर कारण होते हैं। इन कुम्भकार आदि कारणों में भी कुम्भकार सहायक होने रूपये साक्षात् कारण होता है और चक्र, दण्ड आदि सहायक होने रूपसे परम्परया कारण होते हैं। अतः कुम्भकार तो अनुपचरित और असद्भूत व्यवहारनयका विषय है और चक्र, दण्ड आदि उपचरित असद्भूत व्यवहारनयके विषय हैं । यतः उक्त कार्यकी उत्पत्तिमें उत्तरपक्ष बाह्य सामग्रीको सहायक होने रूपसे कारण नहीं मानता है केवल कार्योत्पत्तिके अवसरपर उसकी उपस्थिति मात्र स्वीकार करता है अतः उसकी असद्भूत कारणता को वह कल्पनारोपित मात्र मानता है । दोनों पक्षों का यही मतभेद है । इनमेंसे पूर्वपक्षको मान्यता आगमसम्मत है परन्तु उत्तरपक्षकी मान्यता आगमसम्मत नहीं है। इसे भी पूर्व में स्पष्ट किया जा चुका है ।
इस विवेचनका निष्कर्ष यह है कि पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष दोनोंके मध्य कार्योत्पत्ति के विषयमें कार्यरूप परिणत होनेवाली वस्तुमें द्रव्यरूप उपादान कारणताको स्वीकार करने और उसे द्रव्यथिक निश्चयनय