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अपनी बात
प्रकार प्रत्युत्तर तैयार होनेपर नियमानुसार हमारे पक्षके तीनों प्रतिनिधियोंने उसका वाचन किया । तथा वाचन पूरा होनेपर तीनों प्रतिनिधि विद्वानोंने हस्ताक्षर किये और मध्यस्थकी मार्फत भिजा दिया गया।"
ये वक्तव्य स्पष्ट बतलाते हैं कि उल्लिखित फोटो कापियोंके मुद्रणमें पं० फूलचंद्रजीका उद्देश्य सोनगढ़ पक्षको प्रामाणिक और उचित सिद्ध करने तथा अपरपक्ष को अप्रामाणिव और अनुचित सिद्ध करनेका था । पं० फूलचन्द्रजीका यदि यह उद्देश्य नहीं होता तो वे अवश्य ही सानिया में दो दौरोंकी समाप्तिपर तृतीय दौरकी सामग्रीक विषयमें अपरपक्षके सभी प्रतिनिधियों द्वारा लिखे गये अधिकारपत्रपर ध्यान देते । और नब वे खानिया तत्त्वच के सम्पादकीयके उपर्युक्त वक्तव्य व जैन तत्त्व-मीमांसा (द्वितीय संस्करण) के आत्मनिवेदन के उपर्युक्त वक्तव्योंको कदापि नहीं लिखते । जैन तत्व-मीमांसा (त्रितीय संस्करण) के आत्ममिवंदनके उपयुक्त वस्तयों में तो पं० फूलचन्द्र जीने बहुत कुछ अनर्गल लिखते हुए यहाँ तक लिख डाला है कि "तत्काल इस विषय पर हम और अधिक टिप्पणी नहीं करना चाहतं । आवश्यकता पल्ली तो लिखेंगे।"
उपर्युक्त सभी वक्तव्य देखकर ऐसा लगता है कि ५० फूलचन्द्रजीको इस बातपर उस समय अत्यन्त सोम हो गया था कि अपरपक्ष के तृतीय दौरको सामग्रीपर मात्र एक प्रतिनिधिने हस्ताक्षर किये हैं, शेष चार प्रतिनिधियोंने दरापर हस्तादार नहीं किये है। और इस क्षोभसे उनका चित्त इतना पीड़ित हो गया कि वे अपरपक्षके प्रतिनिधियों द्वारा लिखे गये अधिकारपत्रपर ध्यान नहीं दे सके। उस अधिकारपत्रकी प्रतिलिपि निम्नांकित है :
अधिकार-पत्र "हम नीचे लिखे प्रतिनिधि तत्त्वच के अन्तिम (तृतीय) दौरमें सभी प्रतिशंकाओं व दीगर कागजातपर हस्ताक्षर करनेका अधिकार श्री पं० अजित कुमार जी, दिल्लीको या प्रतिनिधियों से जो भी समयपर उपस्थित रहेगा उसे यह अधिकार देते हैं कि वह हस्ताक्षर कर कागजात का आदान-प्रदान करे । इनमेंसे किसीके भी हस्ताक्षर हम लोगों को मान्य होंगे। कोई भी पत्र व्यवहार निम्नांकित पतोंपर किया जा सकता है ।
१. पंडित अजितकुमार शास्त्री, अभय प्रिटिंग प्रेस, अहाता केदारा, पहाड़ी धीरज, दिल्ली । २. पंडित वंशीधर जी व्याकरणाचार्य, वीना (सागर) म०प्र०
दिनांक १-११-६३ सही-जीवन्धर जैन, सही-बंशीधर शास्त्री, सही-पन्नालाल जैन, सही-मक्खनलाल शास्त्री, सही-माणिकचंद्र।
इस अधिकार पत्र द्वारा मुझे अधिकार दिया गया है वह मुझे स्वीकार हैं। सहीअजितकुमार।
सही-बंशीधर जैन (मध्यस्थ) १-११-६३ प्राप्त कीसही-जगन्मोहनलाल जंन १-११-६३
नोट :-१. इसकी प्रामाणिक एक प्रतिलिपि मैंने प्रतिशंका तीनकी सम्पूर्ण सामग्री के साथ वि० २८-१-६४ को श्री पं० फूलचन्द्र जी वाराणीके मांगने पर उनको रजिस्ट्री द्वारा पुनः भेज दी थी। तथा इसके साथ आवश्यक स्पष्टीकरण भी भेजा था।