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जैनेन्द्रनुपाठः
धम्
स्व
गण
तुंफ
श्रण
मूल
रुजायाम् निष्कर्ष संधाते प्रतिष्ठायान् नियती विकसने मात्रकरणे शैथिल्ये
फल
हिंसायाम्
स्तन
उन
الحر
चिल्ल
संभक्तो
बेलू
हानको वर्णगत्योः
कल
भाषणेच
खेलू
मैथुने
शोए श्रोण श्लोण पैण
बनेल.
जम
पंप
स्खल )
कनी
संघात गीतप्रेरणश्लेषणेषु दीसिकांतिगतिषु गीतभक्तिशब्देषु प्रहन्थे पादविक्षेपे
संक्ये
श्रम एमी
स्वल गल
अदने
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क्रम
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कील
बंधने
गतो
श्वल श्वल्ल । खोल धो त्सर कमर
आझुगमने गतिप्रतिधाते गति चातुर्य
छागतो
ईयार्थाः
हळुने
चम
सूर्य ।
हय ।
फेल
गम्ट
शेरा
हय्य चुच्यी মুল श्रल
गतिमात्योः अभिषवे भूषणपर्यासवारणे
वस्त्रसंयोगे
पतृ মাল चल्ल तिल्ल
दल
श्रण रण
निकल / विशरगो
ध्यभ्र
चण
मौल समील क्ष्मील
निमेषणे
म अन
मग
कण
शिवि
पील
प्रतिष्भे
ब
वर्ण
रिवि
मण
नील शील कुट
रवि
समाधौ श्रावरणे
धति