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विरहितः ]
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श्रीविविधत्तीर्थस्तुतयः।
[११५ ] श्रीविविधतीर्थस्तुतयः।
महंति जे भावजुआ तिसंझं जिणिंदरायं गयरायदोस । लीलाइ ते मुत्तिसिरीविवाहं करंति भावारिनिवारणेण ॥१॥ जइ अस्थि सिद्धित्थिसुहे मणो ता उसहाइ वीरंतजिणे थुणेह। हेमिंदुनीलंजणरत्तवण्णे नित्थिण्णवित्थिण्णभवण्णवे अ ॥२॥ सदी अ लक्खा गुणनऊ अ कोडी भवणेसु कोडीण सयाई तेर। असंखया जोइवणेसु बिंबे नमेह भत्तिब्भरनिन्भरंगा ॥३॥ नई-वास-वेअड-वक्खार-कुण्ड-गयदंत-मेरु-दहमाइठाणे । बिंबाइ वंदे तिरिअं तिलक्खा सहसेगनउआ सयतिण्णि वीसं ॥४॥ पडिमाण कोडीण सयं च एगं बावनकोडी चउनउअ लक्खा । चउचत्त सहसाइं सयाइ सत्ता सद्धा विमाणेसु नमामि उढें ॥५॥ सव्वग्गकोडी पनरस्सयाई दुचत्त कोडी अडवण्ण लक्खा । छत्तीस सहस्सा असीआइ निच्चं बिंबाइ वंदे भुवणत्तयंमि ॥६॥ नंदीसरे अट्ठमए सुदीवे निच्चेसु वावन्नजिणालएसु। सिरिवद्धमाणोसहवारिसेणचंदाणणक्खे पणमामि नाहे ॥७॥ निम्मावियम्मी भरहेण रण्णा भत्तोइ अट्ठावयनामसित्थे । वण्णप्पमाणंकमणुन्न बिंबे रिसहाइ चउवीसजिणे थुणामि ॥८॥ अजिआइवी जिणचन्दनाहा सिवं गया जत्थ निसिद्धभत्ता। ... सुषब्बकयथूभगणाभिनंदो नंदउ स सम्मेअगिरी सयावि ॥९॥
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