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________________ विरहितः ] (३७५ ) श्रीविविधत्तीर्थस्तुतयः। [११५ ] श्रीविविधतीर्थस्तुतयः। महंति जे भावजुआ तिसंझं जिणिंदरायं गयरायदोस । लीलाइ ते मुत्तिसिरीविवाहं करंति भावारिनिवारणेण ॥१॥ जइ अस्थि सिद्धित्थिसुहे मणो ता उसहाइ वीरंतजिणे थुणेह। हेमिंदुनीलंजणरत्तवण्णे नित्थिण्णवित्थिण्णभवण्णवे अ ॥२॥ सदी अ लक्खा गुणनऊ अ कोडी भवणेसु कोडीण सयाई तेर। असंखया जोइवणेसु बिंबे नमेह भत्तिब्भरनिन्भरंगा ॥३॥ नई-वास-वेअड-वक्खार-कुण्ड-गयदंत-मेरु-दहमाइठाणे । बिंबाइ वंदे तिरिअं तिलक्खा सहसेगनउआ सयतिण्णि वीसं ॥४॥ पडिमाण कोडीण सयं च एगं बावनकोडी चउनउअ लक्खा । चउचत्त सहसाइं सयाइ सत्ता सद्धा विमाणेसु नमामि उढें ॥५॥ सव्वग्गकोडी पनरस्सयाई दुचत्त कोडी अडवण्ण लक्खा । छत्तीस सहस्सा असीआइ निच्चं बिंबाइ वंदे भुवणत्तयंमि ॥६॥ नंदीसरे अट्ठमए सुदीवे निच्चेसु वावन्नजिणालएसु। सिरिवद्धमाणोसहवारिसेणचंदाणणक्खे पणमामि नाहे ॥७॥ निम्मावियम्मी भरहेण रण्णा भत्तोइ अट्ठावयनामसित्थे । वण्णप्पमाणंकमणुन्न बिंबे रिसहाइ चउवीसजिणे थुणामि ॥८॥ अजिआइवी जिणचन्दनाहा सिवं गया जत्थ निसिद्धभत्ता। ... सुषब्बकयथूभगणाभिनंदो नंदउ स सम्मेअगिरी सयावि ॥९॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.090206
Book TitleJain Stotra Sandohe Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size8 MB
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