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(३४४) जैनस्तोत्रसन्दोहे [कर्तृनामकरुणारससायरपुण्णचंद !
सीमंधर ! सामिय ! नंद नंद ॥२२॥ भासअइघणुपरउवयारपरायणु नागचरणदसणगुणभायणु । जिणवरआणविहागपरेसु पुंडरगिरिपुरिपमुहपुरेसु ॥२३॥ सुररइएसु ठवंतु नवेसु पायकमलु कंचणकमलेसु । चउविहसुविहिसंघपरिवारो सिरिसीमंधरु करइ विहारो ॥२४॥ नमिरसुरतरुवरसिहरिसमुच्चउ धयवडु लहलहइ अइउच्चउ । धम्मचक्कु गयणंगणि सोहइ इणिगुणि जिणु महिमंडलु मोहइ॥२५॥ चउगइ रायभवभमणु निरोहइ गामि नयरि भवियण पडिबोहइ । तारायणि ससहर जिम राजइ केसरि जिम जिणेसर गाजइ॥२६॥ भास
आज हुयउं सुविहाणु आजु पवित्तु मुहुत्तुमहो । जं नियमणरंगेण राससबंधि संथुणिउ पहो ॥२७॥ रोमंचिउ महु देहु हियडउं हरिसिहिं उल्लसइ । नयणे लद्धु विकासु जं सजिउ जिणकित्तणए ॥२८॥ जिम महुयरु वणराइ रायहंसु जिम सरु विमलो । मेहागमु जिम मोरु झायइ हुं तिम पयकमलो ॥२९॥ दीणु हीणु अन्नाणु माणविवजिउ विनवउं । हिव तिम करिसु पसाउ छुट्टउं जेम दुहाउ हउं ॥३०॥
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