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( २५८ ) जैनस्तोत्रसन्दोहे [ श्रीधर्मघोष. तस्सासि तिसला केलिकुसला कोमलंगि सुरोहिणी. . .
जियरूवदेवी सव्वदेवीलोअमाहि सिरोमणी ॥३॥ अह पाणयाओ सुहलयाओ चविउ वीरजिणेसरो । ___ आसाढविअसे छढिदिवसे नाणतेअदिणेसरो । अवयरिउ गब्भे सुहपगब्भे तीइ चउदस सुविणए
गयसीहपमुहे लच्छिभिमुहे दरिसयंतो रमणए ॥४॥ ता तिजयसामिणि हंसगामिणि वहइ गब्भ सुहरिसिआ __ जिम साइसलिलह बिंदु निम्मलसुत्तिमुत्तिअसरिसिआ । चित्तमासह सुद्धतेरसि लहिय मझिमरत्तयं
पसवेइ नंदणु सीलसंदणु सकललोअपवत्तयं ॥५॥ अह उड़ लोअह पुव्वदाहिणपच्छिमुत्तररुअगओ ___ अटूटू कुमरिअ चउरविदिसिहि चउर मज्झिमरुअगओ । आवित्तु विरयहि जम्मि वीरह सूइकम्म सुदिक्खिआ
पवणब्भदप्पणकलसवीअणचमरदीवयरक्खिआ ॥६॥ अह ओहिनाणिण जम्मु जाणिण जिणह आसण उदिओ
चउरंगनामं तिअपणामं करिवि जाणुदुगढिओ। पंजलिअ कहियं सक्कथययं सक्क हरिणिगमेसिणं
जिणमहिमकारणि घंटताडणि आइसइ निद्देसिणं ॥७॥ पालगविहियविमाणिं लक्खजोयणपमाणि
आरूहिउ आगम्म थुणवि जणणिं बहुमाणिं । अवसोअणि पडिमुत्ति मुत्तु करि गहिउ जिणेसरु
इगरूविण धारिंतु छतु अवरेण सुरेसरु ।
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