SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषयानुक्रमणिका प्रथम अध्याय सातवीं शताब्दी से पूर्व की भारतीय राजनीति सिन्धुयुगीन राजनीति 1, वैदिक कालीन राजनीति 2, महाकाव्यों में वर्णित राजनीति 3. स्मृतिग्रन्थों में प्रतिपादित राजनीति 4, राजनीति प्रधान ग्रन्थों में वर्णित राजनीति 7. कौटिलीय अर्थशास्त्र 7, शुक्रानीतिसार 9, कामन्दकीय नीतिस्तर 10 द्वितीय अध्याय सातवीं से दशवीं शत्यन्दी तक के प्रमुख जैन राजनैतिक विचारक और उनका योगदान: रविषेण 13, जटासिंहनन्दि 14, जिनसेन प्रथम 15, धनंजय 16, सादीसिंह 18, जिनसेन द्वितीय 20, गुणभद्र 21, वीरनन्दि 22, असग 24, सोमदेव 25 तृतीय अध्याय राज्य राज्य की परिभाषा और उसका क्षेत्र 29, राज्य की उत्पत्ति 31, राज्य के अंग 32. राष्ट्र 32, देश 32, विषय 32, मण्डल 32, जनपद 32, दारक 32, निर्गम 32, जनपद के गुण 32, जनपद के दोष 32, राष्ट्र के कण्टक 33 राज्य का फल 33, राज्य के कार्य 33 . चतुर्थ अध्याय राजा - राजा का महत्त्व 35, राज्यभिषेक 38, राजा का उत्तराधिकारी 40, राजाओं की दिनचर्या 41, राजाओं के भेद 41, कुलकर 42, चक्रवती 42,अर्द्धचक्री 43, विद्याधर 44, महामाण्डलिक 45, मण्डलाधिय 45, सामन्त 45, द्वोप 46 भूचर 46, धर्मविजयो राजा 46, लोमविजयी राजा 46, असुरविजयी राजा 47, शत्रु और मित्र की अपेक्षा राजाओं के भेद 47 राजाओं के मित्र 48, निस्पमित्र सहजमित्र 48, कृत्रिम मित्र 48, मित्र के गुण 48, मित्र के दोष 49, आर्दश मैत्री की परीक्षा 49, मैत्री के अयोग्य पुरुष 49, राजा के अधिकार 49, राजा के कर्तव्य 49, न्यायपुर्ण व्यवहार 49, कुलपालन 50, प्रत्यनुपालन 50, आत्मानुपालन 50. प्रजापालन 51, अनुरूप दण्ड देना 51, मुख्य वर्ग की रक्षा 52, घायल और मृत सैनिकों को रक्षा 52, सेवकों की दरिद्रता का निवारण तथा सम्मान 52, योग्य स्थान पर नियुक्ति 52, कण्टक शोधन 53, सेवकों की आजीविका देना 53, योग्य पुरुषों की नियुक्ति 53, कृषि कार्य में योग देना 53, अमरम्लेच्छों को वश के करना 53, प्रजारक्षण 54, सारजस्य अथवा समञ्जसत्व धर्म का पालन 54, दुराचार का निषेध करना 5A, लोकापवाद से भयभीत होना 54, राजमण्डल के प्रति कर्त्तव्य 55, उदासीन 55, मध्यम का मध्यस्थ 55, विजीगोणु 55, अरि 55 मित्र 55 पाणिग्राह 55, आक्रन्द 55, आसार 55, अन्तद्घि 55 शत्रु के कुटुम्बियों के प्रति राजकर्तव्य 55 परदेश में रहने वाले स्वदेशी व्यक्ति के प्रति राजकर्तव्य 55, सहायकों के प्रति राजकर्तव्य 55, व्यापारियों के प्रति राजकर्तव्य 56, अन्य कर्तव्या 55, राजा के गुण 57. घरांगचरित में प्रतिविम्बित राजा के गुण 57, द्विसन्धान महाकाव्य में प्रतिबिम्बित राजा के गुण 58, वादोपसिंह
SR No.090203
Book TitleJain Rajnaitik Chintan Dhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherArunkumar Shastri
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy